आदिवासी समाज की भाषाओं और बोलियों को संरक्षित किये जाने की जरूरत : सुश्री उइके
रायपुर, 11 अगस्त (आरएनएस)। आदिवासी समाज के भाषाएं-बोलियां पिछले कई वर्षों में कई कारणों से विलुप्त हो गई और कुछ इसकी कगार में है। इनके लुप्त होने से समाज की अमूल्य ज्ञान, परम्पराएं, संस्कृति भी समाप्त हो जाती है। हम सबकी जिम्मेदारी है कि ऐसी बोलियों-भाषाओं को संरक्षित करें, यह बात छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने आज नई दिल्ली में आयोजित इंटरनेशनल डे ऑफ द वर्ल्ड इंडिजनस पीपुल्स (विश्व आदिवासी दिवस) की रजत जयंती समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से कही। उन्होंने आदिवासी समाज की कुछ बोलियों और भाषाओं के संरक्षण पर जोर दिया।
सुश्री उइके ने कहा- राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मुझे छत्तीसगढ़ के राज्यपाल की जिम्मेदारी दी है, वह मेरा ही नहीं पूरे जनजातीय समाज का सम्मान है, इनके लिए मैं उन्हें पूरे समाज की तरफ से धन्यवाद देती हूं।
राज्यपाल ने कहा कि भाषा सभ्यता और संस्कृति की पोषक होती है। भाषा उस समाज की सभ्यता और संस्कृति का परिचय देती है। इस समय पूरे विश्व में लोक भाषा और लोक बोलियों पर संकट गहराया है। यह स्थिति हमारे देश की जनजातियों की बोलियों और भाषाओं में इसका प्रभाव अधिक है। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा की मौत सिर्फ एक भाषा की ही मृत्यु नहीं होती, बल्कि उसके साथ की ही उस भाषा का ज्ञान-भंडार, इतिहास, संस्कृति समाप्त हो जाती है। खासतौर पर आदिवासी समाज में अनेक संस्कृति और परम्पराओं के साथ जड़ी-बूटियों की और उनके औषधीय उपयोग की जानकारी होती है। भाषा के विलुप्त होने से यह भी गुम हो जाती है। हर भाषा में पर्यावरण से जुड़ा एक ज्ञान जुड़ा होता है। जब एक भाषा चली जाती है तो उसे बोलने वाले पूरे समूह का ज्ञान लुप्त हो जाता है।