युद्ध की स्थिति में सड़कों पर उतरेंगे लड़ाकू विमान
नई दिल्ली ,17 जनवरी (आरएनएस)। केंद्र सरकार रणनीतिक महत्वपूर्ण स्थानों के 29 राष्ट्रीय राजमार्गों पर हवाई पट्टियां बनाएगा, जिनका इस्तेमाल लड़ाकू विमान की आपातकालीन लैंडिंग के लिए किया जाएगा।
केंद्रीय परिवहन मंत्रालय के अनुसार प्रस्तावित पट्टियां जम्मू और कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उत्तराखंड, मणिपुर और पश्चिम बंगाल की अतंरराष्ट्रीय सीमा पर बनाई जाएंगी। तीन प्रस्तावित पट्टियां ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ को जोडऩे वाले राजमार्गों पर बनाई जाएंगी जो कि माओवाद प्रभावित हैं। आपातकालीन पट्टियों का निर्माण दक्षिण के राज्यों तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में भी करने की योजना है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री ने 2016 में रक्षा मंत्रालय और भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के साथ एक अंतर-मंत्रालयी संयुक्त समिति के गठन की घोषणा की थी। जिससे कि इन पट्टियों का निर्माण करने और तकनीकी विवरणों की जानकारी मिल सके। आईएएफ और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकारण (एनएचएआई) को साइट सर्वेक्षण और निरीक्षण का काम सौंपा गया था। साइट सर्वेक्षण और निरीक्षण के काम के साथ ही योजना बनाना और आपातकालीन लैंडिंग सुविधाओं के लिए बोली लगाने का कार्य विभिन्न स्तरों पर है। सात जनवरी को लोकसभा में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री मनसुख मांडविया ने बताया कि इस कार्य को समाप्त करने की सीमा आठ महीने रखी गई है। नवंबर में मांडविया ने घोषणा की थी कि केंद्र ने राज्यों की 13 सड़कों की पहचान की है जहां आपातकालीन लैंडिंग हो सकती है। जिसमें 11 सड़के एनएचएआई के अंतर्गत आती हैं जबकि दो राज्य राजमार्ग हैं।
सड़क मंत्रालय के अनुसार अभी इस तरह की केवल एक ही पट्टी कार्यशील है जो उत्तर प्रदेश के लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे पर बनी है। पूर्व वायुसेना प्रमुख फली होमी मेजर ने कहा, श्यह एक बेहतरीन विचार है और दुनिया के बहुत से हिस्सों में इसे अपनाया जा रहा है लेकिन यह बहुत जटिल परियोजना होने वाली है। इसमें बहुत सारी योजना और विचार के अलावा सबसे ज्यादा फंड की जरूरत होगी। वायुसेना द्वारा प्रस्तावित 29 पट्टियों में से तीन के लिए बोली लगनी शुरू हो गई है। इनमें जम्मू और कश्मीर का बिजबेहरा से लेकर चिनार बाग, पश्चिम बंगाल के खडग़पुर से ओडिशा के कियोनझार तक (प्रस्तावित लागत 97.51 करोड़ रुपये) और आंध्र प्रदेश के नेल्लोर से ओंगोल तक (प्रस्तावित लागत 79.84 करोड़ रुपये) शामिल है। परिवहन मंत्रालय के अनुसार, श्उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में प्रस्तावित चार परियोजनाओं को मंत्रालय ने अव्यवहार्य बताया है। जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राज्स्थान और तमिलनाडु की परियोजना में वन्यजीव और भूमि अधिग्रहण की वजह से देरी हो रही है। वहीं जम्मू और कश्मीर और पश्चिम बंगाल की दो परियोजनाओं को वायुसेना की यूनिट के साथ बात करने के बाद फिलहाल के लिए रोक दिया गया है।
इन सड़कों से भारत-चीन बॉर्डर तक तुरंत पहुंचेंगी सेना
भारत-चीन सीमा पर केंद्र सरकार 44 सड़कें बनवाने की तैयारी में जुट गई है। इसके साथ ही पाकिस्तान से सटे पंजाब और राजस्थान में करीब 2100 किलोमीटर की मुख्य एवं संपर्क सड़कों का निर्माण करेगी। इन सड़कों को सामरिक रूप से महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। इन सड़कों के निर्माण के पीछे मकसद यह है कि चीन से टकराव की स्थिति में सेना को बॉर्डर पर तुरंत जुटाने में आसानी हो। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) द्वारा इस महीने जारी की गई वार्षिक रिपोर्ट 2018-19 के मुताबिक एजेंसी को भारत-चीन सीमा पर रणनीतिक तौर पर काफी अहम इन 44 सड़कों के निर्माण का निर्देश दिया गया है। इससे चीन से टकराव की स्थिति में बॉर्डर पर सेना को तुरंत भेजने में आसानी होगी।
21,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा संबंधी मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) से विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पर मंजूरी लेने की प्रक्रिया चल रही है। रिपोर्ट में बताया गया कि भारत-चीन सीमा पर सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण इन 44 सड़कों का निर्माण करीब 21,000 करोड़ रुपये की लागत से किया जाएगा।
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