मोदी सरकार की डील यूपीए से 2.86 फीसदी सस्ती
नई दिल्ली ,13 फरवरी (आरएनएस)। राफेल सौदे पर जारी विपक्ष के विरोध के बीच बुधवार को राज्यसभा में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट पेश की गई है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के मुकाबले एनडीए सरकार ने 2.86 फीसदी सस्ती डील फाइनल की है। 36 राफेल लड़ाकू विमानों का ये सौदा पीएम मोदी के कार्यकाल में साल 2016 में हुआ था। इससे पहले यूपीए के कार्यकाल में 126 राफेल का सैदा हुआ था लेकिन कई शर्तों के कारण आम राय नहीं बन पाई थी।
कैग की ये रिपोर्ट 141 पेज की है, जिसे पेश करने के बाद से ही राज्यसभा में हंगामा शुरू हो गया है। जिसके कारण सभापति को सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
17.08 फीसदी पैसा बचा
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि 126 विमान के सौदे के मुकाबले भारत 17.08 फीसदी पैसों की बचत करने में कामियाब हुआ है। इस रिपोर्ट पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ट्वीट कर कहा है कि महागठबंधन का झूठ बेनकाब हो गया और सच की जीत हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले 18 राफेल विमानों का डिलिवरी शेड्यूल पुरानी 126 विमानों की डील से बेहतर है।
रिपोर्ट में क्या है?
इस रिपोर्ट में 2007 और 2015 की मूल्य बोलियों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है। इसमें लिखा है, श्आईएनटी द्वारा की गणना संरेखित मूल्य यू 1 मिलियन यूरो था जबकि लेखापरीक्षा द्वारा आंकलित की गई संरेखित कीमत श्सीवीश् मिलियन यूरो थी, जो आईएनटी संरेखित लागत से लगभग 1.23 प्रतिशत कम थी। यह वो मूल्या था जिस पर 2015 में अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाने चाहिए थे, यदि 2007 और 2015 की कीमतों को बराबर माना जाता। लेकिन इसके बजाय 2016 में यू मिलियन यूरो के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे जो लेखापरीक्षा के संरेखित कीमत से 2.86 प्रतिशत कम थी। सौदे में हुई देरी की मुख्य वजह तकनीकी और मूल्य मूल्यांकन में आई दिक्कत है। तकनीकी मूल्यांकन रिपोर्ट में निष्पक्षता, तकनीकी मूल्यांकन प्रक्रिया की इक्विटी के बारे में नहीं बताया गया है। ऑडिट ने ये भी पाया कि आईएएफ ने एएसक्यूआर (एयर स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट) को ठीक से परिभाषित नहीं किया। एएसक्यूआर खरीद की प्रक्रिया के दौरान कई बार बदला भी है। मार्च 2015 में रक्षा मंत्रालय की एक टीम ने 126 राफेल विमानों की खरीद का सौदा रद्द करने की सिफारिश की थी। टीम ने कहा था कि डसाल्ट एविएशन की बोली महंगी थी और ईएडीएस (यूरोपियन एरोनॉटिक्स डिफेंस एंड स्पेस कंपनी) पूरी तरह से आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं थी।टीम ने 2015 के प्रस्ताव में कहा कि डसाल्ट एविएशन राफेल तकनीकी मूल्यांकन चरण में ही अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए था क्योंकि यह आरएफपी की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं था।
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