31 जनवरी तक अपने पद पर बने रहेंगे: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली ,12 दिसंबर (आरएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाण के पुलिस महानिदेशकों को अगले वर्ष 31 जनवरी तक पद पर बने रहने की बुधवार को मंजूरी दी। पुलिस प्रमुख सुरेश अरोड़ा (पंजाब) और बीएस संधू (हरियाणा) 31 दिसम्बर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। अब वे 31 जनवरी तक इस पद पर बने रहेंगे।
पंजाब और हरियाणा सरकारों ने हाल ही में न्यायालय से अपने एक आदेश में संशोधन करने का अनुरोध करते हुए आवेदन दायर किए थे। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि राज्यों में पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति के लिए नामों का चयन करने के लिए संघ लोक सेवा आयोग की मदद लेना अनिवार्य होगा। राज्यों ने कहा था कि उन्होंने पुलिस प्रमुख के चयन और नियुक्ति के लिए अलग कानून बनाए हैं। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि इस आदेश में संशोधन के लिए दायर आवेदनों पर 8 जनवरी को विचार किया जायेगा। इसके साथ ही पीठ ने इन दोनों राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को 31 जनवरी तक पद पर बने रहने की अनुमति भी दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 3 जुलाई को देश में पुलिस सुधार के लिए अनेक निर्देश जारी किए थे और पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया को क्रमबद्ध कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यों को मौजूदा पुलिस महानिदेशक के सेवानिवृत्त होने से करीब तीन महीने पहले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की एक सूची संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को भेजनी होगी। कोर्ट ने ये भी कहा था कि इसके बाद, आयोग एक पैनल का गठन करेगा और राज्यों को सूचना देगा, जिसे सूची में से तत्काल एक की नियुक्ति करनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के एक आवेदन पर यह निर्देश दिया था। केंद्र ने इसमें दावा किया था कि कुछ राज्य कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक नियुक्त कर रहे हैं और फिर उनके सेवानिवृत्त होने से पहले उनकी नियुक्ति स्थाई करके उन्हें दो साल के अतिरिक्त कार्यकाल का लाभ प्रदान कर रहे हैं। इससे पहले की तारीख पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से बिहार और पंजाब सरकारों ने कहा था कि तीन जुलाई के आदेश में सुधार की आवश्यकता है क्योंकि वे पहले ही इस बारे में कानून बना चुके हैं। बिहार सरकार के वकील ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के 2006 के फैसले के आलोक में राज्य पहले ही पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया सहित विभिन्न बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए विस्तृत कानून बना चुकी है। पश्चिम बंगाल सरकार ने भी इसी तरह का आवेदन कोर्ट में दायर किया है।
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