कांग्रेस की आंधी ने किया भाजपा का सुपड़ा साफ

जगदलपुर, 12 दिसंबर (आरएनएस)। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव परिणामों ने यह साफ कर दिया है कि मतदाता ने बड़ी सूझबूझ का परिचय देते हुए भाजपाईयों को हवा में उडऩे की बजाय जमीन पर चलने का सबक सिखाया है। चुनाव नतीजों ने भाजपा का यह दर्पदमन कर दिया है कि, हम तो सत्ता में आ ही रहे हैं। प्रदेश में भाजपा ने चुनाव प्रचार में बढ़-चढ़ कर खर्च किया और कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ दिया था। इन चुनावों को भाजपाई दिग्गज नेता जनादेश की संज्ञा देते नहीं थकते थे, उनकी अब बोलती बंद है। मतदाता ने उन्हें ऐसी पटखनी दी है कि उनके पास बगलें झांकने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह गया है।

ये रहे भाजपा की हार के अहम कारण

दरअसल प्रदेश में भाजपा की जो अधोगति हुयी है, उसके पीछे एक नहीं अनेक कारण हैं, जिनमें कुछ राष्ट्रीय मुद्दे हैं, तो कई प्रादेशिक। जीएसटी ने जहां व्यापारियों की कमर तोड़ दी है, वहीं नोटबंदी व कमर तोड़ महंगाई से आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। विकास कार्यों में भ्रष्टाचार सिर चढ़कर बोलता रहा। शराब ठेकेदारों की नसबंदी कर, सरकार शराब बेचती रही। सरकारी अमला अपनी समस्याओं की दुहाई देते-देते थक गया था। बोनस से वंचित, किसान अपनी सुविधाओं का मोहताज बना रहा। अपने नेताओं के अहंकार तथा आमजनों व कार्यकर्ताओं से दुव्र्यवहार को, भाजपाई सत्ता के नशे में इतने मदमस्त थे, कि देखना ही मुनासिब नहीं समझा। इन्हीं सब कारणों नेे भाजपा का बेड़ा गर्क करके रख दिया।

भाजपा को चिंतन-मनन करना होगा

प्रदेश में मतदाताओं ने एक निर्णायक फैसला दे दिया है, जिसे भाजपा आलाकमान को समझने की जरूरत है। मतदाताओं ने भाजपा विरोधी फैसला दिया है। भाजपा अब फिर से मतदाता का दिल कैसे जीते, इस पर उसे गंभीरता से चिंतन-मनन करना होगा, अन्यथा मई में लोकसभा चुनाव के घातक परिणाम हो सकते हैं। चुनाव में स्टारकों के सघन प्रचार अभियानों के बावजूद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपाध्यक्ष अमित शाह, जनता को लुभाने में नाकामयाब रहे, इस कड़वे सत्य को भाजपा नेता भी मान रहे हैं।

अहंकार भी बना पराजय का बड़ा कारण

प्रदेश में अच्छी संभावना के बाद भी भाजपा गुटबाजी की बीमारी के कारण जीत की जमीन तैयार करने में असफल रही। दरअसल भाजपा नेता जनता की नब्ज नहीं पहचान पाए, जनता घिसे-पिटे चेहरे को देखते-देखते उकता चुकी थी। यदि चेहरे बदलकर पैंतरा अपनाती, तो उसे लाभ अवश्य मिल सकता था। किंतु 3 बार की अपार सफलता ने उसके जांचने-समझने की शक्ति क्षीण कर दी थी, इसीलिए पुराने चेहरे मैदान में उतारना, सत्ताधारी भाजपा को महंगा पड़ गया।

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