पीएसएलवी ने लॉन्च किया हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग सैटलाइट

नई दिल्ली ,30 नवंबर (आरएनएस)। कुछ महीने पहले ओडिशा में स्निफर डॉग्स और मेटल डिटेक्टर्स ने मॉर्निंग ड्रिल पर निकले सीआरपीएफ जवानों के एक ग्रुप को शक्तिशाली लैंडमाइंस से बचा लिया। एक स्टडी के मुताबिक पिछले 17 सालों में मिलिटरी जवानों समेत 3700 से अधिक लोग लैंडमाइंस के ऊपर आने की वजह से मारे जा चुके हैं लेकिन अब आगे शायद अपनों की कीमती जिंदगी बचाई जा सकेगी। इसरो ने पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-43 द्वारा 31 सैटलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। इसमें भारत का हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग सैटलाइट (एचवाईएसआईएस) भी शामिल है। यह अंतरिक्ष में 600 किमी से भी अधिक ऊंचाई से लैंडमाइंस मैपिंग करने में सक्षम होगा।
इसका कैमरा इतना शक्तिशाली है कि यह कीचड़ या बर्फ पर टायरों के निशान, स्वस्थ व खराब फसलों में फर्क और जमीन में छिपे खनिजों को भी खोज सकता है। अबतक अमेरिका और चीन जैसे कुछ देशों ने ही एचवाईएसआईएस जैसी तकनीक को अपने सैटलाइट में शामिल किया है। आईआईटी मद्रास के इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रफेसर उदय के खानखोजे ने बताया कि नियर इन्फ्रारेड औ शॉर्टवेब इन्फ्रारेड क्षमता वाले हाइपरस्पेक्ट्रल कैमरे मिट्टी में 5 सेमी अंदर तक देख सकते हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि यह रेडार जितने उपयोगी नहीं हैं जो वेब एनर्जी भेज ज्यादा गहराई तक पता लगा सकता है।
एचवाईएसआईएस कैमरा विजिबल और नीयर इन्फ्रारेड पर काम करेगा जिसकी वेबलेंग्थ 400 और 1400 नैनोमीटर के बीच होगी। इसकी शॉर्टवेब-इन्फ्रारेड वेबलेंग्थ 1400 और 3000 नैनोमीटर के बीच होगी। एचवाईएसआईएस जमीन का अध्ययन करने वाले अभी मौजूद सभी सैटलाइट से बेहतर है और यह ज्यादा स्पष्ट तस्वीर देता है। सैटलाइट एक्सपर्ट और इसरो के पूर्व चेयरमैन एएस किरण कुमार ने बताया कि मनुष्य की आंख लाल, हरे और नीले रंग का कॉन्बिनेश ही देख सकती है। हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजर्स इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम में किसी भी दो रंग के बीच में मौजूद रंगों की पहचान कर सकता है, उनकी तस्वीर ले सकता है।
एचवाईएसआईएस का कैमरा धरती पर 55 अलग-अलग रंगों की पहचान कर सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि यह मिट्टी, इसके नीचे दबी चीजें, यहां तक कि जमीन के नीचे मेटल और मिनरल्स की भी पहचान कर सकता है। खानखोजे के मुताबिक यह जीवित और मृत पौधों में फर्क भी कर सकता है। हालांकि दूसरी तरफ यह सिंथेटिक अपर्चर वाले सैटलाइट की तरह अंधेरे में नहीं देख सकेगा। सूरज की रोशनी में इसकी देखने की क्षमता हमारे एक मीटर तक की दूरी तक की चीजों को देखने की क्षमता के बराबर होगी।
इस लिहाज से यह सर्विलांस के अलावा खेती, फॉरेस्ट्री, कोस्टल जोन की निगरानी, धरती के नीचे पानी, मिट्टी और दूसरे जियोलॉजिकल इन्वायरनमेंट्स के लिहाज से भी मददगार होगा। नैशनल कोस्टल रिसर्च लैबरेटरी के एक वैज्ञानिक ने बताया कि यह सैटलाइट वॉटर क्वॉलिटी की स्टडी के साथ, तट के किनारे मैंग्रोव्स की मैपिंग भी कर सकेगा। इसरो के अधिकारियों ने बताया कि 2008 में आईएमएस-1 एक्सपेरिमेंटल सैटलाइट में पहली बार इस तरह के कैमरे का इस्तेमाल हुआ था। इसके बाद लूनर मिनरल रिसोर्स का पता लगाने के लिए चंद्रयान-1 के साथ भी हाइपरस्पेक्ट्रल कैमरा भेजा गया था।
इस सैटलाइट में डिटेक्टर आरे चिप अहमदाबाद के स्पेस ऐप्लिकेशन सेंटर ने डिजाइन की है। इसे चंडीगढ़ की सेमी कंडक्टर लैबरेटरी ने बनाया है। यह चिप 1000*66 पिक्सल्स को रीड कर कती है। अमेरिका और चीन जैसे कुछ ही देश हैं जिन्होंने इस टेक्नॉलजी को अपने सैटलाइट में इस्तेमाल किया है।
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