सुप्रीम कोर्ट ने किया याचिकाओं पर जल्द सुनवाई से इंकार
नई दिल्ली,12 नवंबर (आरएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में याचिकाओं पर जल्द सुनवाई करने से इंकार कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में याचिकाओं पर जल्द सुनवाई करने से इंकार कर दिया है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी कह चुका है कि इस मामले की सुनवाई के लिए नई तारीखों का फैसला वह अगले साल जनवरी में करेगा।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा कि इससे संबंधित अपील पहले भी आ चुकी हैं, जिसकी सुनवाई जनवरी में होनी है। अखिल भारतीय हिंदू महासभा की ओर से शीघ्र सुनवाई के संबंध में अधिवक्ता बरूण कुमार के अनुरोध को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, श्श्हमने आदेश पहले ही दे दिया है। अपील पर जनवरी में सुनवाई होगी। इससे पहले शीर्ष अदालत ने 27 सितंबर को 1994 के अपने उस फैसले पर पुनर्विचार के मुद्दे को पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ को सौंपने से इंकार कर दिया था जिसमें कहा गया था कि श्मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है। यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। शीर्ष अदालत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2रू1 के बहुमत से अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और पूर्व का फैसला इस मामले में प्रासंगिक नहीं है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अपनी और प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा था कि उसे यह देखना होगा कि 1994 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने किस संदर्भ में यह फैसला सुनाया था। दूसरी ओर, खंडपीठ के तीसरे सदस्य न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर ने दोनों न्यायाधीशों से असहमति व्यक्त करते हुये कहा था कि धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए यह फैसला करना होगा कि क्या मस्जिद इस्लाम का अंग है और इसके लिये विस्तार से विचार की आवश्यकता है। अदालत ने 27 सितंबर को कहा था कि भूमि विवाद पर दीवानी वाद की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ 29 अक्टूबर को करेगी। मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग है या नहीं, यह मुद्दा उस वक्त उठा जब तीन न्यायाधीशों की पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर, 2010 को 2रू1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाये।
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