भारत ने अब तक किया 8 लाख टन चीनी निर्यात का अनुबंध
नई दिल्ली ,12 नवंबर (आरएनएस)। चीनी के अधिशेष स्टॉक के बीच देश की चीनी मिलों ने पश्चिम एशिया और श्रीलंका जैसे देशों को करीब आठ लाख टन चीनी का निर्यात करने का अनुबंध किया है। एक अधिकारी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि कुल अनुबंधित मात्रा में से कच्ची चीनी 6 लाख टन है और शेष दो लाख टन साफ चीनी है।
सरकारी अधिकारी ने बताया कि हम चीनी का निर्यात बढ़ाने के लिए विभिन्न देशों के साथ बातचीत कर रहे हैं। चीन चीनी खरीदने को सहमत हुआ है और इंडोनेशिया के साथ भी बात चल रही है। अधिशेष स्टॉक को कम करने के लिए, सरकार ने घरेलू चीनी मिलों से 2018-19 विपणन वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) में अनिवार्य रूप से 50 लाख टन चीनी निर्यात करने को कहा है तथा वह आंतरिक परिवहन, मालढुलाई, रखरखाव और अन्य शुल्कों के लिए आने वाले खर्च की भी भरपाई कर रही है। सरकार बंदरगाहों से 100 किमी के भीतर स्थित मिलों को 1,000 रुपए प्रति टन की परिवहन सब्सिडी दे रही है, तटीय राज्यों में बंदरगाह से 100 किमी से अधिक की दूरी पर स्थित मिल के लिए 2,500 रुपए प्रति टन और अन्य में स्थित मिलों के लिए 3,000 टन प्रति टन की परिवहन सब्सिडी दी जा रही है। भारत ने 2017-18 के विपणन वर्ष में रिकॉर्ड 3.25 करोड़ टन चीनी का उत्पादन किया और वर्तमान विपणन वर्ष में उत्पादन समान स्तर पर रहने या थोड़ा ही कम रहने का अनुमान है। चीनी की वार्षिक घरेलू मांग करीब 2.6 करोड़ टन की है। पिछले महीने शुरू होने वाले मौजूदा विपणन वर्ष की शुरुआत में देश में एक करोड़ टन का शुरुआती या पहले का बचा स्टॉक भी है।
नकदी संकट से जूझ रहे चीनी उद्योग को समस्या से निजात दिलाने के लिए, सरकार ने जून में इस क्षेत्र के लिए 8,500 करोड़ रुपए के वित्तीय पैकेज की घोषणा की थी, जो मुख्य रूप से इथेनॉल क्षमता को बढ़ावा देने के लिए था। बाद में, सितंबर में, सरकार ने 5,500 करोड़ रुपए के पैकेज को मंजूरी दी, जिसमें 2018-19 विपणन वर्ष में चीनी मिलों को 50 लाख टन तक चीनी का निर्यात करने के लिए परिवहन सब्सिडी और गन्ना उत्पादकों के लिए उत्पादन सहायता राशि शामिल थी। देश में अतिरिक्त चीनी उत्पादन की स्थिति से निपटने के लिए अपनी व्यापक नीति के तहत, सरकार ने विपणन वर्ष 2018-19 के लिए उत्पादकों को उत्पादन सहायता को बढ़ाकर 13.88 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया है, जो इस वर्ष 5.50 रुपए प्रति क्विंटल थी। इसका मकसद चीनी मिलों की गन्ने की लागत के बोझ को कम करना है।
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