प्रतिष्ठानों के खिलाफ 12 जून तक नहीं होगी दंडात्मक कार्रवाई: सुप्रीम कोर्ट
0-पूरा वेतन भुगतान न करने का मामला
नई दिल्ली,04 जून (आरएनएस)। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान अपने कर्मचारियों और श्रमिकों को पूरा वेतन नहीं देने वाले निजी प्रतिष्ठानों के खिलाफ 12 जून तक दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी। इसपर लगी अंतरिम रोक की अवधि गुरुवार को 12 जून तक के लिए बढ़ा दी गई।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने इस मामले की वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई पूरी करते हुए दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने संबंधी आदेश की अवधि बढ़ाई। न्यायालय ने गृह मंत्रालय की 29 मार्च की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा। मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान यह चिंता थी, कि श्रमिक बगैर पारिश्रमिक के नहीं रहने चाहिए। लेकिन एक चिंता और भी थी कि औद्योगिक इकाइयों के पास उन्हें देने के लिए धन ही नहीं हो तो। ऐसी स्थिति में संतुलन बनाने की आवश्यकता है। इस बीच न्यायालय ने सभी पक्षकारों से कहा कि वे अपने अपने दावों के समर्थन में लिखित में दलीलें पेश करें। शीर्ष अदालत ने 15 मई को केंद्र से कहा था कि लॉकडाउन के दौरान अपने श्रमिकों को पूरा पारिश्रमिक देने में असमर्थ रहे निजी प्रतिष्ठानों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए। इस बीच केंद्र ने भी 29 मार्च के निर्देशों को सही ठहराते हुए न्यायालय में हलफनामा दाखिल किया। उसने कहा कि अपने कर्मचारियों और श्रमिकों को पूरा भुगतान करने में असमर्थ निजी प्रतिष्ठानों को अपनी ऑडिट की गई बैंलेंस शीट और खाते न्यायालय में पेश करने का आदेश दिया जाना चाहिए।
केंद्र ने आदेश को सही ठहराया
इससे पहले केंद्र ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान निजी प्रतिष्ठानों को अपने श्रमिकों को पूरा पारिश्रमिक देने संबंधी 29 मार्च के निर्देश को उच्चतम न्यायालय में सही ठहराया है और कहा कि पूरा वेतन देने में असमर्थता व्यक्त करने वाले नियोक्ताओं को न्यायालय में अपनी ऑडिट की हुई बैलेंस शीट और खाते पेश करने का निर्देश दिया जाना चाहिए। न्यायालय के निर्देश पर गृह मंत्रालय ने यह हलफनामा दाखिल किया है। इसमें कहा गया है कि 29 मार्च के निर्देश आपदा प्रबंधन कानून के प्रावधानों, योजना और उद्देश्यें के अनुरूप था। सरकार ने इस अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निबटारा करने का अनुरोध करते हुए कहा कि उस अधिसूचना का समय खत्म हो चुका है और अब यह सिर्फ अकादमिक कवायद रह जाएगी क्योंकि इन 54 दिनों का कर्मचारियों का दिया गया वेतन और पारिश्रमिक की राशि की वसूली की मांग करना जनहित में नहीं होगा। सरकार ने कहा कि 25 मार्च से 17 मई के दौरान सिर्फ 54 दिन तक प्रभावी रही इस अधिसूचना के बारे में निर्णय करना न तो न्याय हित में होगा और न ही ऐसा करना जनहित में होगा। शीर्ष अदालत ने 26 मई को एक मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।
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