एसीआई नियम सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी
नईदिल्ली,12 फरवरी (आरएनएस)। मध्यस्थता प्रक्रिया को जन-अनुकूल, लागत सक्षम तथा तेजी से निष्पादन और मध्यस्थों की तटस्था सुनिश्चित करने के लिए मध्यस्थता तथा सुलह अधिनियम, 1996 में मध्यस्थता तथा सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2015 द्वारा संशोधन किया गया। तदर्थ मध्यस्थता के स्थान पर संस्थागत मध्यस्थता को प्रोत्साहित करने के लिए तथा मध्यस्थता तथा सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2015 को लागू करने में आ रही कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों को समाप्त करने के लिए सरकार ने मध्यस्थता तथा सुलह अधिनियम, 1996 में मध्यस्थता तथा सुलह संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधन किया है। संशोधन अधिनियम के कुछ प्रावधान 30.08.2019 से लागू किए गए हैं।
संशोधन अधिनियम अन्य बातों के साथ-साथ 1996 के अधिनियम में नया भाग 1ए जोड़ता है। इसका उद्देश्य मध्यस्थता करने वाले संस्थानों की ग्रेडिंग तथा मध्यस्थों के प्रत्यायन के लिए एक स्वतंत्र निकाय यानी भारतीय मध्यस्थता परिषद (एसीआई) की स्थापना करना है।
अधिनियम के अनुच्छेद 43सी के अनुसार एसीआई का अध्यक्ष वह व्यक्ति होगा, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रहा हो या मध्यस्थता प्रशासन का विशेष ज्ञान और अनुभव रखने वाला प्रख्यात व्यक्ति हो। एसीआई की अध्यक्ष की नियुक्ति भारत के प्रधान न्यायाधीश की सलाह से केन्द्र सरकार द्वारा की जाएगी। इसके अतिरिक्त एसीआई में दो पूर्णकालिक सदस्य होंगे, जो जाने-माने मध्यस्थ या शिक्षाविद् रहे हों। इसके अतिरिक्त अंशकालिक सदस्य के रूप में एसीआई में मान्यता प्राप्त वाणिज्य और उद्योग संस्था का एक प्रतिनिधि बारी-बारी से मनोनीत किया जाएगा। विधि और न्याय मंत्रालय के विधि कार्य विभाग के सचिव, वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग के सचिव तथा एसीआई के मुख्य कार्यपालक अधिकारी पदेन सदस्य होंगे।
अधिनियम की अनुच्छेद 43एम में ऐसे सदस्यों और कर्मचारियों के लिए परिषद का सचिवालय बनाने का प्रावधान है।
सरकार इस प्रक्रिया में सभी हितधारकों से विचार-विमर्श करना चाहती है। प्रारूप नियम की प्रति विधि कार्य विभाग की वेबसाइट पर अपलोड की गई हैं। सभी हितधारकों को अपनी टिप्पणियां 14 मार्च, 2020 तक प्रस्तुत करनी है।
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