सात प्रतिशत के पार रहेगी जीडीपी की रफ्तार

नईदिल्ली,04 जुलाई (आरएनएस)। केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को संसद में 2018-19 की आर्थिक समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि सरकार (केन्द्र तथा राज्य) वित्तीय मजबूती और वित्तीय अनुशासन की राह पर है। समीक्षा में कहा गया है कि राजस्व को मजबूत बनाना और व्यय को नई प्राथमिकता देना तथा विवेक संगत बनाना वित्तीय सुधारों के लिए अभिन्न है। प्रत्यक्ष कर को आधार बनाना तथा वस्तु और सेवा कर को स्थिर बनाना अन्य प्राथमिकताएं हैं। व्यय गुणवत्ता में सुधार महत्वपूर्ण प्राथमिकता बनी हुई है। नव संशोधित वित्तीय मार्ग को बदले बिना आवंटन आवश्यकताओं को पूरा करना सबसे बड़ी चुनौती है। वृह्द आर्थिक स्थिरता को बनाए रखते हुए 2018-19 में भारतीय अर्थव्यवस्था 6.8 प्रतिशत (केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी अस्थायी अनुमानों के अनुसार) बढऩे का अनुमान है। वृह्द स्थिरता के साथ विकास की प्रेरणा, ढांचागत सुधार, वित्तीय अनुशासन, सेवाओं की सक्षम डिलिवरी तथा वित्तीय समावेश से मिलती है।
संशोधित वित्तीय मार्ग में वित्त वर्ष 2020-21 तक वित्तीय घाटे को जीडीपी के 3 प्रतिशत तक लाना और 2024-25 तक केन्द्र सरकार के ऋण को जीडीपी के 40 प्रतिशत तक रखने के लक्ष्य को हासिल करने की बात कही गई है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि केन्द्रीय बजट 2018-19 के बजट के साथ प्रस्तुत मध्यम अवधि के वित्तीय नीति वक्तव्य का उद्देश्य 2018-19 में वित्तीय घाटा लक्ष्य को जीडीपी के 3.3 प्रतिशत तक लाना है। वित्त वर्ष 2018-19 में वित्तीय घाटा जीडीपी के 3.4 प्रतिशत तक रहा और ऋण जीडीपी का अनुपात 44.5 प्रतिशत (अस्थाई) रहा। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में 2017-18 की तुलना में 2018-19 में कुल केन्द्रीय सरकारी व्यय 0.3 प्रतिशत कम हुआ। यह व्यय राजस्व में 0.4 प्रतिशत अंक की कमी और पूंजी व्यय में 0.1 प्रतिशत अंक वृद्धि के साथ हुआ। राज्यों के वित्त के संबंध में राज्यों के अपने कर तथा गैर-कर राजस्व में 2017-18 के संशोधित अनुमान में मजबूती दिखी, जो कि 2018-19 में बरकरार रही।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि केन्द्र तथा राज्यों की सम्मिलित देनदारियों में मार्च 2018 के अंत तक जीडीपी के 67 प्रतिशत तक की कमी आई, जो मार्च अंत 2016 के अंत में जीडीपी की 68.5 प्रतिशत थी। आशा है कि केन्द्र सरकार का वित्तीय घाटा 2017-18 के जीडीपी के 6.4 प्रतिशत से घटकर 2018-19 बजट अनुमान में जीडीपी के 5.8 प्रतिशत तक हो जाएगा।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2018-19 का बजट निवेश की आशावादी परिस्थितियों और व्यापार चक्र की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया गया। बजट में वित्तीय मजबूती के उद्देश्य को दोहराया गया और इसमें नये वित्तीय लक्ष्य को ऋण तथा वित्तीय घाटा कम करने पर फोकस के साथ प्रस्तुत किया गया। 2018-19 के बजट में 2017-18 के संशोधित अनुमानों की तुलना में सकल कर राजस्व (जीटीआर) में 16.7 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई गई। यह अनुमान व्यक्त किया गया कि सकल कर राजस्व (जीटीआर) 22.7 लाख करोड़ रुपये का होगा, जो जीडीपी का 12.1 प्रतिशत है। लेकिन 2018-19 में अस्थाई वास्तविक के लिए सकल कर राजस्व यद्पि बजट अनुमान से कम रहा फिर भी इसमें 2017-18 की तुलना में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। कॉरपोरेट टैक्स में सुधार के कारण 2018-19 अस्थाई वास्तविक में प्रत्यक्ष कर में 2017-18 की तुलना में 13.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
केन्द्र सरकार के वित्त मामलों में जीडीपी अनुपात में करों में पिछले कई वर्षों में सुधार हुआ है, राजस्व व्यय में मजबूती आई है, पूंजी खर्च की तरफ झुकाव बढ़ा है तथा केन्द्र सरकार की कुल देनदारियों में निरंतर कमी दिखी है। इन सब कारणों से प्राथमिक और वित्तीय घाटों में कमी के परिणाम देखने को मिले हैं।
आर्थिक समीक्षा 2018-19 में कहा गया है कि वर्ष 2018-19 के लिए अस्थाई वास्तविक की तुलना बजट अनुमानों से करने से जाहिर होता है कि सरकार वित्तीय घाटे को जीडीपी के 3.4 प्रतिशत तक नियंत्रित रखने में सफल हुई है। समीक्षा में कहा गया है कि व्यय गुणवत्ता 2017-18 की तुलना में 2018-19 अस्थाई वास्तविक में कुल व्यय में पूंजी व्यय के हिस्से में प्रदर्शित हुई है।
समीक्षा में यह भी कहा गया है कि राज्यों को कुल अंतरण में 2014-15 तथा 2018-19 संशोधित अनुमान के बीच जीडीपी के 1.2 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है। केन्द्र सरकार की कुल देनदारियों (जीडीपी के अनुपात रूप में) में निरंतर कमी आई है, विशेषकर 2003 में वित्तीय उत्तरदायित्व तथा बजट प्रबंधन अधिनियम पारित होने से यह कमी आई है। समीक्षा में कहा गया है कि यह वित्तीय मजबूती के प्रयासों तथा अपेक्षाकृत अधिक जीडीपी वृद्धि के कारण हुआ है।
2019 के मार्च अंत तक केन्द्र सरकार की कुल देनदारियां 84.7 लाख करोड़ रुपये की रही, जिसमें 90 प्रतिशत सार्वजनिक ऋण था। अधिकतर सार्वजनिक ऋण नियत ब्याज दर पर दिए गए जिससे भारत का ऋण स्टॉक ब्याज दर के उतार-चढ़ाव से मुक्त रहा। इससे ब्याज भुगतान की दृष्टि से बजट को निश्चितता और स्थायित्व मिला।
आर्थिक समीक्षा 2018-19 में कहा गया है कि 2016-17 की तुलना में 2017-18 के संशोधित अनुमान में राज्यों का बजट राजस्व व्यय में वृद्धि के कारण काफी बढ़ा। राजस्व मोर्चे पर राज्यों के अपने कर तथा गैर-कर राजस्व में 2017-18 संशोधित अनुमान में वृद्धि दिखी, जो कि 2018-19 के बजट अनुमान में बनी रही। समीक्षा मे कहा गया है कि 2016-17 की तुलना में 2017-18 के संशोधित अनुमान में जीडीपी के अनुपात में वित्तीय घाटा में सुधार हुआ है।
आर्थिक समीक्षा में चेतावनी दी गई है कि वित्तीय मोर्चे पर अनेक चुनौतियां सामने आएंगी। वृद्धि दर में नरमी की आशंका व्यक्त की जा रही है कि जिसका असर राजस्व संग्रह पर पड़ेगा। वित्त वर्ष 2018-19 में जीएसटी संग्रह में कमी आई है। इसलिए केन्द्र और राज्य दोनों की सरकारों के संसाधन में सुधार के लिए जीएसटी संग्रह में वृद्धि महत्वपूर्ण होगी। विस्तारित प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) तथा आयुष्मान भारत और नई सरकार के अन्य नई पहलों के लिए वित्तीय घाटे के लक्ष्य से समझौता किए बिना संसाधन जुटाने होंगे। ईरान से तेल आयात पर अमरीकी पाबंदी का प्रभाव तेल की कीमतों पर पड़ेगा और परिणाम स्वरूप इसका असर चालू खाता संतुलन के अतिरिक्त पेट्रोलियम सब्सिडी पर भी पड़ेगा। 15वां वित्त आयोग अप्रैल 2020 से शुरू होने वाले अगले पांच वर्षों के लिए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। केन्द्र से राज्यों को दिए जाने वाले कर हिस्से पर आयोग की सिफारिशों का प्रभाव केन्द्र सरकार के वित्त पर पड़ेगा।
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