एक बार फिर संजीवनी साबित हुई आयुर्वेद की दवाएं और सूरज की जिंदगी में लौटी रोशनी
रायपुर, 02 जुलाई (आरएनएस)। महंगे अस्पतालों के खर्चों से थक हारकर लोग अब भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्वति की ओर धीरे-धीरे लौट रहे हैं। जटिल बिमारियों का भी इलाज कराकर मरीज स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं । राजधानी के शासकीय आयुर्वेदिक अस्पताल के पंचकर्म विभाग में चिकित्सकों ने एक ऐसे मरीज का इलाज किया है जो पूरी तरह चलने, फिरने, और बोलने में असक्षम था । परिजनों ने बताया सूरज मानिकपुरी(24), बीए सेकेंड इयर में पढाई के दौरान दोस्तों के साथ पिकनिक टूर पर गया था जब नहाते समय उसका पैर फिसल गया और उसकी गर्दन की हड्डी टूट गयी.कोरबा के गहिनीया कंजीनाला निवासी सूरज की इस हादसे से लकवा गस्त हो गया । परिजनों ने तत्काल सूरज को कोरबा व बिलासपुर के अस्पताल में उपचार कराया । महंगे अस्पतालों में ऑपरेशन व इलाज लगातार दो साल जारी रहा । इलाज कराने में जमीन व माँ का ज़ेवर भी बेचने पड़े और इसके बाद भी परिजन कर्ज में दबते गए । दो साल बाद डॉक्टर्स हार मान गए लेकिन पिता ने उम्मीद नहीं हारी । मूलत: कोरबा जिले के बालको नगर निवासी सूरज स्टेचर में ही दो साल तक पडा रहा। वह बिस्तर में करवट भी नहीं ले सकता था । खुद के पैरों को हिलाने की नसों में ताकत नहीं थी।
पिता के उम्मीद से व्हीलचेयर में चलता सूरज:
आखिर पिता सूरज को आठ महीने पहले शासकीय आयुर्वेदिक अस्पताल ले आया जहाँ आठ महीने के उपचार के बाद सूरज की सेहत में बहुत लाभ हुआ है7स्ट्रेचर से उठकरअब वह व्हीलरचेयर पर बैठने लगा है और घूम सकता है।