गर्मी की शुरूवात में ही दम तोडऩे लगे नदी-नाले और कुंए

जगदलपुर, 24 अप्रैल (आरएनएस)। जिस प्रकार से बस्तर के जंगल कट रहे हैं और आज भी काटे जा रहे हैं तथा भू-गर्भीय जल स्तर भी कम होता जा रहा है। उससे बस्तर में गर्मी की शुरूआत में ही पीने के पानी सहित निस्तार के लिए पानी की उपलब्धता कम होती जा रही है।
एक समय ऐसा था जब बस्तर में जल और जंगल की संपदा से भरपूर पानी प्राप्त होता था और यहां प्रत्येक क्षेत्र में पानी का भंडारण होता था, लेकिन वर्षा की कमी और बढ़ते ताप के साथ कटते जंगलों में बस्तर में पानी की समस्या को भीषण बना दिया है। समूचे बस्तर में इस बार गर्मी के मौसम के आरंभिक चरण में ही नदियां, तालाब तथा गांव में विद्यमान कुंए जल भंडारण के अभाव में दम तोडऩे लगे हैं।
उल्लेेखनीय है कि अगले जून के मध्य से मानसून सीजन शुरू होने के पहले यदि थोड़ी वर्षा नहीं हुई तो परिस्थितियां गंभीर रूप धारण कर सकती हैं। यह भी इस संबंध में विशेष तथ्य है कि इन दिनों बस्तर में सबसे अधिक 233 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली इंद्रावती नदी में भी पानी नहीं होने से जलसंकट गहरा गया है। जल संसाधन विभाग की इस संबंध में अब जाकर नींद खुली है और इसमें मध्यम एवं लघु सिंचाई जलाशयों में जल भंडारण की समीक्षा शुरू कर दी है। वर्तमान में मौजूदा स्थिति में संभाग में स्थित जल संसाधन विभाग के तीन मध्यम और 197 लघु सिंचाई जलाशयों में से आधे से अधिक सूख चुके हैं। सूखे जलाशयों में या तो डेड लेवल तक ही पानी बचा है जो गेट खोलकर भी नहीं निकाला जा सकता या फिर जलाशय में जगह-जगह गढ्ढों में कीचड़ युक्त पानी ही भरा नजर आ रहा है। पचास से भी कम जलाशय ऐसे हैं जहां कुछ पानी बचा है। इस प्रकार घने जंगलों में स्थित प्राकृतिक जलश्रोतों के सूखने से जंगली जानवरों को भी पीने के पानी के लिए भटकना पड़ रहा है। जंगलोंं के समीप स्थित वन ग्रामों में इनकी चहल कदमी देखी जा रही है। गांव-गांव से पीने के पानी की मांग उठ रही है।

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