इंद्रावती जल संकट के लिए निर्णायक उपाय की जरूरत

जगदलपुर, 21 अपै्रल (आरएनएस)। 20 वर्षों से छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच इंद्रावती नदी पर पानी के हक के लिए चल रहे विवाद के बावजूद अब तक कोई निर्णायक फैसला न आने की वजह से बस्तर में ग्रीष्म ऋ तु में इंद्रावती नदी सूख जाती है। इन दिनों स्थिति तो और भी गंभीर है। विश्वप्रसिद्ध प्रपात में गिरने वाला पानी पूरी तरह से गिरना बंद ही हो गया है और इंद्रावती नदी का जल स्तर बेहद कम हो चला है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि चित्रकोट जल प्रपात पूरी तरह सूख गया है।

बस्तर में पानी के लिए त्राहिमाम जैसे हालात पैदा हो गए हैं। आलम ये है की चित्रकोट जलप्रपात का इन दिनों अस्तित्व ही समाप्त होता नजर आ रहा है। इंद्रावती जल संकट पर निर्णायक उपाय की माँग के साथ ही बस्तर की पर्यटन एवं संस्कृति के क्षेत्र में काम करने वाली अग्रणी संस्था दंडक दल ने 20 अप्रेल  से चरणबद्ध आंदोलन शुरू किया है। केवल चित्रकोट जलप्रपात की रक्षा नहीं, बल्कि समूची इंद्रावती नदी के अस्तित्व की रक्षा के लिए दंडक दल आंदोलन कर रहा है। इसके अंतर्गत सबसे पहले संस्था के सदस्य जगदलपुर की जागरूक जनता के साथ इंद्रावती नदी में आधे डूबे रहकर जल सत्याग्रह करेंने की योजना बनाई गई है।

दंडक दल के संस्थापक सदस्य अविनाश प्रसाद ने जानकारी देते हुए बताया की 31 करोड 50 लाख रूपए कंट्रोल स्ट्रक्चर बनाने के लिए छग सरकार ने ओडि़शा सरकार को दिए थे। 2012 में दोनों राज्यों के बीच कंट्रोल स्ट्रक्चर निर्माण के लिए संधि हुयी थी। 1999 में मप्र के सीएम दिग्वजय सिंह और ओडि़शा के सीएम गिरधर गोमांग के बीच जल बंटवारे को लेकर सहमति बनी। 1 लाख 25 हजार लोगों की सिर्फ  जगदलपुर में ही इंद्रावती प्यास बुझा रही है, 20 सालों से इसका पानी जोरा नाला में चला जा रहा है और 200 गांव के लोग इस पर ही आश्रित हैं। उन्होंने कहा कि 390 किमी क्षेत्र में फैली इंद्रावती नदी के अस्तित्व के लिए व्यापक आंदोलन चलाया जाएगा।

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