भारत में तेजी से बढ़ रहा है साइबर क्राइम

नई दिल्ली ,25 मार्च (आरएनएस)। दुनिया के बाकी देशों की तरह भारत में भी हर आयु वर्ग के लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। सस्ते इंटरनेट पैक के आने से इसके इस्तेमाल में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। लेकिन इंटरनेट के जितने लाभ हैं उतने ही नुकसान भी हैं। साल 2018 में आई साइबर सिक्योरिटी से जुड़ी रिपोट्र्स से कुछ यही पता चल रहा है।
रिपोट्र्स के मुताबिक भारत अब उन देशों की सूची में शामिल हो गया है जहां सबसे अधिक साइबर अपराध हो रहे हैं। सालभर में करीब 8 लाख से ज्यादा भारतीय बैंकिंग ट्रोजन से पीडित हुए हैं, वहीं एक सर्वे के अनुसार 37 फीसदी अभिभावकों ने ये बात स्वीकार की है कि उनका बच्चा सालभर में कम से कम एक बार साइबर बुलिंग का शिकार हुआ है।
युवा महिलाएं और बच्चे आसान शिकार
युवा महिलाओं और बच्चों के लिए सोशल साइट्स मानसिक विकारों का कारण बन रही हैं। उन्हें अपनी उपेक्षा का डर रहता है। वह अधिक लाइक्स पाने के लिए अपनी फ्रेंड लिस्ट में किसी को भी शामिल कर लेते हैं। इसके अलावा उन्हें अपनी बेइज्जती का डर भी लगा रहता है। वह इस बात का खास ध्यान रखते हैं कि सोशल साइट पर वह अच्छे दिखें। वहीं सबसे खतरनाक फीचर है टैगिंग। कोई भी अंजान व्यक्ति महिलाओं और बच्चों को आपत्तिजनक तस्वीरों आदि में टैग कर देते हैं। सोशल साइट पर बच्चों की मौजूदगी के मामले में भारत ऑस्ट्रेलिया के बाद दूसरे नंबर पर आता है।
घटे हैं फाइनेंशियल फिशिंग के मामले
रिपोर्ट के मुताबिक फाइनेंशियल फिशिंग के मामले काफी घटे हैं। पहले ये आंकड़ा 53.85 फीसदी था जो अब कम होकर 44.7 फीसदी रह गया है। सिक्योरिटी कंपनी ईसीईटी ने मोबाइल एप स्टोर पर कई ऐसे एप की सूची भी दी है जो मोबाइल पर ऑटोमेटिक इंस्टॉल होकर गड़बड़ी फैला सकते हैं। इनसे बचने के लिए इन्हें अनइंस्टॉल करना ही बेहतर है।
सबसे ज्यादा बच्चे हो रहे शिकार
आजकल टिकटॉक और स्नैपचौट जैसे एप पर बच्चे अधिक सक्रिय रहते हैं। वह ना केवल अपनी वीडियो शेयर करते हैं बल्कि अंजान लोगों से चौट भी करते हैं। अधिक लाइक्स के चक्कर में बच्चे अंजान लोगों को भी अपनी आईडी में शामिल कर देते हैं। रिपोर्ट से पता चलता है कि 2018 में भारतीय बच्चे सबसे ज्यादा साइबर बुलिंग का शिकार हुए हैं। 28 देशों में किए गए सर्वे में 37 फीसदी अभिभावकों ने माना है कि उनके बच्चे साइबर बुलिंग का शिकार हुए हैं। ये आंकड़ा 2016 में 22 फीसदी था।
क्या होता है ट्रोजन?
अधिक संख्या में भारतीय लोग ट्रोजन का शिकार हो रहे हैं। ट्रोजन एक तरह का कंप्यूटर सॉफ्टवेयर होता है। जिससे कंप्यूटर का डाटा चोरी किया जाता है और मिटाया भी जाता है। ट्रोजन की सहायता से हैकर कंप्यूटर को हैक कर सकता है। बैंकिंग ट्रोजन की सहायता से यूजर के डिवाइस से उसकी बैंकिंग जानकारी भी हैक की जाती है।
रिपोर्ट में पता चला कि 2018 में करीब 4 फीसदी भारतीय बैंकिंग ट्रोजन का शिकार हुए हैं। ये आंकड़ा 2017 में 7 लाख 67 हजार था। यानी ये संख्या अब 15.9 फीसदी तक बढ़ गई है। इंडीविजुअल यूजर्स को बीते साल वित्तीय खतरों से ज्यादा राहत नहीं मिली। रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई कि कई बैंकर पैसे कमाने के लिए शिकार ढूंढते हैं। आर्थिक सेंधमारी को लेकर बीते साल तकनीकी विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि प्ले स्टोर पर कई एप ऐसे हैं जो आर्थिक सेंधमारी कर सकते हैं।
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