डॉक्टरों के पहले प्रमोशन से पूर्व 3 साल गांव में सेवा अनिवार्य:नायडू

नईदिल्ली,25 मार्च (आरएनएस)। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर नये सिरे से ध्यान केन्द्रित करने का आह्वान किया है और चेताया है कि स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता का आकलन उसके लिए किए गए भुगतान से नहीं किया जा सकता। उपराष्ट्रपति आज लोनी, महाराष्ट्र में प्रवर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, डीम्ड यूनिवर्सिटी (पीआईएमएस-डीयू) के 13वें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे।
नायडू ने उन 437 स्नातकों को बधाई दी, जिन्हें डिग्रियां प्रदान की गईं और इन छात्रों पर विश्वास रखने के साथ ही उन्हें सहयोग करने, उन्हें अपनी प्रतिभा और सृजनात्मकता को पूरी तरह पहचानने का अधिकार प्रदान करने के लिए माता-पिता की सराहना की। उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि उत्कृष्टता के लिए पुरस्कार और पदक जीतने वाले स्नातकों में बड़ी संख्या में महिलाएं हैं। उन्होंने कहा कि अधिक प्रभावी विकास के लिए महिलाओं को अधिकार सम्पन्न बनाने से बढिय़ा कोई साधन नहीं है।
उपराष्ट्रपति ने देश के स्वास्थ्य पेशेवरों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए पीआईएमएस-डीयू की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह ग्रामीण और जनजातीय आबादी की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने के लिए ऐसे समय पर बहुमूल्य सेवाएं दे रहा है, जब भारत के ग्रामीण इलाकों में अधिक योग्य डॉक्टरों, नर्सों और थैरेपिस्टों की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि डॉक्टरों के लिए ग्रामीण इलाकों में 3 वर्ष सेवाएं देना अनिवार्य किया जाए।
नायडू ने ‘प्रवरÓ की स्थापना करने और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में योगदान के लिए पद्मभूषण स्वर्गीय डॉक्टर बाला साहब विखे पाटिल की सराहना की।
इस बात को दोहराते हुए की भारत के युवा अपना भविष्य निर्धारित करने में सक्षम हैं, उपराष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की उस रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि भारत में जनसांख्यिकी लाभ के अवसर 2005-06 से 2055-56 तक पांच दशक के लिए उपलब्ध होंगे, जो दुनिया के किसी अन्य देश की तुलना में अधिक हैं।
उपराष्ट्रपति का मानना था कि जनसांख्यिकी के अपरिमित लाभ मनुष्य की क्षमताओं में वृद्धि करने के लिए आवश्यक स्थान बनाते हैं, जिसका आने वाले समय में वृद्धि और विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने राष्ट्र निर्माण में अर्थपूर्ण भूमिका प्रदान करने के लिए युवाओं को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा प्रदान करने, खासतौर से व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा देने पर जोर दिया।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में भारत के समक्ष कुछ बड़ी चुनौतियां हैं। इनमें महामारी विज्ञान में परिवर्तन जैसे कि संचारी से गैर-संचारी रोग, स्वास्थ्य सेवाओं तक सभी की समान पहुंच नहीं होना तथा इलाज पर बढ़ता खर्च शामिल है। नायडू ने कहा कि देश की बड़ी आबादी को स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरी इलाकों में चिकित्सकों की संख्या चार गुना अधिक है और गांव तथा शहरों के बीच विभाजन को युद्धस्तर पर खत्म करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ग्राम राज्य हासिल किये बिना राम राज्य हासिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि ग्रामीण विकास उनके दिल के अधिक नजदीक है।
टेक्नोलॉजी के महत्व पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इसकी मदद से बेहतर नैदानिक और इलाज की सुविधाएं प्रदान करके देश के करोड़ों लोगों तक पहुंचना संभव है।
चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने के बढ़ते खर्चों पर चिंता व्यक्त करते हुए नायडू ने कहा कि तकनीकी अविष्कारों के साथ स्वास्थ्य सेवाओं को जोडऩे से सस्ती चिकित्सा सेवा देने में निश्चित रूप से मदद मिलेगी। उन्होंने सभी शैक्षणिक संस्थानों का आह्वान किया कि वे अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा नई प्रौद्योगिकी हासिल करने और आधुनिकीकरण के लिए अनुसंधान तथा विकास पर खर्च करें।
चिकित्सा के पेशे को मिशन बताते हुए नायडू ने कहा कि डॉक्टरों को इस देश के स्वास्थ्य की रक्षा करके राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। केवल स्वस्थ राष्ट्र ही समृद्ध राष्ट्र बन सकता है।
नायडू ने सभी युवा डॉक्टरों और उभरते हुए चिकित्सकों से आग्रह किया कि वे अमीर और गरीब सहित अपने सभी मरीजों का समान प्रतिबद्धता, लाभ, सम्मान और ईमानदारी से इलाज करें।
वसुधैव कुटुम्बकम के उद्धत विचार जो भारतीय सभ्यता के डीएनए में है, उसकी सभी को याद दिलाते हुए उपराष्ट्रपति ने युवाओं से कहा कि वे परीक्षा के समय प्रकाश स्तंभ के रूप में आदर्श बनकर दिखाएं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद, देशभक्ति, ईमानदारी, शांति, सहानुभूति, सम्मान, सौहार्द और सहअस्तित्व के मूल्यों को बढ़ाएं।
उपराष्ट्रपति ने छात्रों का आह्वान किया कि वे खुद को मानवता की सेवा करने, भूख, गरीबी, अज्ञानता और अंधविश्वास को समाप्त करने में खुद को समर्पित करें। उन्होंने छात्रों से कहा, ‘आज आपने अपने विश्वविद्यालय का गौरव बढ़ाया है। अब समय आ गया है, जब आप अपने राष्ट्र का गौरव बढ़ाएं।Ó
यह कहते हुए कि प्रवर का अर्थ है ‘विशिष्टताÓ और ‘श्रेष्ठताÓ। उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि प्रवर की इस महान परम्परा को बनाए रखें और अपनी शानदार वाणी और कार्यों से इस अलख को जलाकर रखें। (साभार-पीआईबी)
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