जनजातीय समुदायों को विकास की धारा से अलग न किया जाए: नायडू

नई दिल्ली ,19 फरवरी (आरएनएस)। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने जनजातियों को पिछड़ा मान लेने की भ्रांति को त्यागने की अपील करते हुये आगाह किया कि संरक्षण के नाम पर इन समुदायों को राष्ट्र के विकास की मुख्य धारा से अलग थलग नहीं किया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के स्थापना दिवस के अवसर पर मंगलवार को नायडू ने कहा कि संरक्षण के नाम पर जनजातीय समुदायों को अलग थलग दायरे में नहीं बांधा जाना चाहिये। जनजातीय समुदायों की जीवंत समृद्ध परंपरा है और उनकी आकांक्षाओं को राष्ट्रीय विकास में समाहित करने से ही सबका साथ सबका विकास होगा। उपराष्ट्रपति ने इन समुदायों की सामाजिक सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण और संवद्र्धन के लिये सुझाव दिया कि संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आने वाले राज्यों के राज्यपालों की रिपोर्टों को संसद के पटल पर रखा जाय। साथ ही इन रिपोर्ट का संसदीय समितियों द्वारा अध्ययन किया जाय। नायडू ने कहा कि जनजातीय समुदायों की जीवंत और समृद्ध परंपराओं का आदर करना न केवल सामाजिक नागरिक शिष्टाचार है बल्कि हमारा संवैधानिक संकल्प भी है। आज जब हम पर्यावरण के अनुकूल स्थाई विकास के रास्ते खोज रहे हैं, ये समुदाय हमें पर्यावरण सम्मत विकास के सार्थक तरीकों से अवगत करा सकते हैं। जनजातीय समुदायों की विशिष्ट जीवनशैली के संरक्षण की जरूरत पर बल देते हुये उन्होंने कहा कि विश्व में हर जनजातीय समुदाय, प्रकृति को उसके विभिन्न रूपों में पूजता है। उनकी पूजा पद्धतियां अलग हो सकती है पर प्रकृति के प्रति उनकी आस्था एक है। नायडू ने इसे विविधता में एकता का विशिष्ट उदाहरण बताते हुये कहा कि जनजातीय समुदायों के उत्थान औेर विकास के लिये सरकार द्वारा चलाए गए जनधन और मुद्रा योजना सहित वित्तीय सहायता के अन्य कार्यक्रम मददगार साबित हो सकते हैं। इस अवसर पर जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार साय सहित मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
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