धर्म संसद की तैयारी है सरकार की जमीन वापसी याचिका
नई दिल्ली,29 जनवरी (आरएनएस)। अध्यादेश और संसद में कानून केजरिए तत्काल राम मंदिर निर्माण की मांग पर हाथ खड़े करने के बाद सरकार ने अचानक गैरविवादित भूमि को वापस लौटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सभी को चौंका दिया है। दरअसल आम चुनाव में बड़ा मुद्दा बनते दिख रहे इस विवाद के मामले में सरकार अपने हाथ खाली नहीं रखना चाहती है। सरकार के न्यायिक प्रक्रिया पूरा होने के बाद अंतिम फैसला करने संबंधी रुख पर साधु-संत और यहां तक की संघ ने भी लगातार खुल कर नाराजगी जताई थी। सरकार को अंदेशा था कि बुधवार को कुंभ में हो रहे धर्म संसद में अगर इस मुद्दे पर उसका हाथ खाली रहा तो उसे साधु-संतों के खुले विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
हालांकि सरकार के इस कदम का विहिप सहित साधु संतों ने खुला स्वागत किया है। इसके जरिए सरकार और भाजपा ने खुद को साधु संतों का निशाना बनने से बचा के साथ राम मंदिर पर बहस की दिशा बदल दी है। मगर सरकार की जमीन वापसी संबंधी इस नए कदम से राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट से अंतिम फैसला आने में और देरी हो सकती है। गौरतलब है कि राम मंदिर मसला करीब नौ सालों से सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। अब सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में अंतिम फैसला लेने से पहले गैरविवादित भूमि को वापस लौटाने संबंधी याचिका का भी निस्तारण करना होगा। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट में मुख्य मामले की त्वरित सुनवाई की संभावना बनती नहीं दिख रही। मगर इतना तय है कि इस नई याचिका केजरिए सरकार और भाजपा ने राम मंदिर मामले में बहस की दिशा को मोडऩे में सफलता हासिल कर ली है।
सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री के मुताबिक बुधवार को हो रही विहिप की धर्मसंसद को राम मंदिर पर संतों के रुख को ले कर सरकार आशंकित थी। चूंकि इस धर्म संसद में संघ प्रमुख की भी पहली बार भागीदारी की बात कही जा रही थी। ऐसे में वहां उठे सरकार के खिलाफ विरोध के कारण सरकार और पार्टी की मुश्किलें बढ़ती। गौरतलब है कि संघ और उसके अनुषांगिक संगठन न सिर्फ अध्यादेश या कानून केजरिए राम मंदिर की मांग पर अड़े थे, बल्कि इस मामले में सरकार पर सीधा और परोक्ष हमला बोलने में भी संकोच नहीं बरत रहे थे।
मुख्य पक्षकार रामजन्म भूमि न्यास को साधा
सरकार ने गैरविवादित जमीन उसके मालिकों को लौटाने की याचिका दायर कर सरकार ने इस मामले के सबसे बड़े पक्षकार राम जन्म भूमि न्यास को साधा है। इस मुद्दे से जुड़े 67 एकड़ भूमि में से 42 एकड़ भूमि इसी न्यास की है। न्यास से वर्ष 1996 में जमीन वापसी की गुहार केंद्र सरकार से लगाई थी। मांग नहीं मानने पर न्यास ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। यहां से भी निराशा हाथ लगने के बाद न्यास सुप्रीम कोर्ट गया।
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