3 साल से अपनों की मदद के इंतजार में 8 भारतीय

हैदराबाद,13 जनवारी (आरएनएस)। आठ भारतीय नाविकों को यूएई के शारजाह पोर्ट पर लगभग बंधक बनाकर रखा गया है। मदद का इंतजार कर रहे इन नाविकों ने अब भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई है। शिप एम वी अजराकमोइआ पर कुल 10 नाविक सवार हैं, जिनमें से एक-एक सूडान और तंजानिया से है। आठ भारतीय नाविकों में आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम के रमेश गाडेला और यल्ला राव चेक्का, तमिलनाडु के कैप्टन अय्यपन स्वामीनाथन, भरत हरिदास और गुरुनाथन, उत्तर प्रदेश के आलोक पाल, पश्चिम बंगाल के नस्कर सौरभ और असम के राजिब अली शामिल हैं।
इस शिप को यूएई के अधिकारियों ने करीब तीन साल पहले 15 अप्रैल 2016 को हिरासत में लिया था और इस शिप पर सवार नाविकों की सीमैन बुक्स और पासपोर्ट्स को जब्त कर लिया गया था। शिप पर सवार कैप्टन अय्यपन स्वामिनाथन ने बताया, यहां हम गुलामों की तरह रह रहे हैं और ऐसा लगता है जैसे हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया गया हो। हम यहां बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं और घर भी नहीं लौट सकते क्योंकि ये लोग मंजूरी नहीं दे रहे हैं। हमारी सैलरी भी महीनों से पेंडिंग है।
गाजा तूफान में तबाह हुआ कैप्टन का परिवार
एक अन्य नाविक रमेश ने विडियो मेसेज में कहा, हम घर लौटना चाहते हैं, प्लीज मदद करिए। संबंधित अधिकारियों को यह विडियो मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली शाहीन सय्यद ने भेजा है। हाल ही में तमिलनाडु में आए चक्रवाती तूफान गाजा में कैप्टन अय्यपन के परिवार को भारी नुकसान पहुंचा। कैप्टन अय्यपन ने बताया, इस तूफान में मेरा परिवार बुरी तरह प्रभावित हुआ, मगर किसी तरह जीवित बच गया। मैं ऐसे हालात में भी उनकी कोई मदद नहीं कर पाया।
इन नाविकों को मुंबई स्थित रसिया शिपिंग सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, ओथ मरीन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और कृष्णामृतम एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड ने नौकरी पर रखा था। शिप का मैनेजमेंट एलीट वे मरीन सर्विसेज वित्तीय समस्याओं में उलझ गया और तब से इन लोगों को इनकी तनख्वाह मिलना भी बंद हो गई। क्रू के कई मेंबर बीमार भी हैं।
यूएई ने शिप पर लगाया बैन
हालांकि यूएई स्थित कॉन्स्युलेट जनरल ऑफ इंडिया की ओर से इन्हें कुछ राहत दी गई है, मगर क्रू का आरोप है कि यह काफी नहीं है। यूएई के ट्रांसपोर्ट विभाग ने शिप के कमर्शल इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। अय्यपन ने कहा, हर कोई हमारी तकलीफ के बारे में जानता है लेकिन हम अब भी ऐसे जीने को मजबूर हैं।
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