हत्या के प्रयास मामले में समझौता गैरमाफी योग्य अपराध: सुप्रीम कोर्टे

नई दिल्ली ,06 जनवारी (आरएनएस)। आपराधिक मामलों को आपसी समझौते सुलह के बाद निरस्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि आईपीसी की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास का मामला रद्द नहीं किया जा सकता चाहे आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच सुलह ही क्यों न हो गई हो। यह गैरमाफी योग्य अपराध है। हालांकि, इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एक फैसले में धारा 307 के तहत किए गए अपराध में सुलह के बाद मामले की कार्यवाही समाप्त करने को सही ठहराया था। धारा 307 में जुर्म साबित होने पर 10 साल की सजा का प्रावधान है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने यह व्यवस्था मध्यप्रदेश सरकार की अपील स्वीकार करते हुए दी। सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी जिसमें हाईकोर्ट ने अभियुक्त कल्याण सिंह के खिलाफ धारा 307, 294 तथा 34 आईपीसी का मुकदमा समाप्त कर दिया था। पीठ ने कहा कि गंभीर आरोपों को देखते हुए कहा जा सकता है कि हाईकोर्ट ने इस मामले में इस आधार पर आरोपों को निरस्त कर गंभीर चूक की है कि आरोपी और शिकायतकर्ता में सुलह हो चुकी है। जबकि धारा 307, 294 तथा 34 आईपीसी के ये आरोप संगीन प्रकृति के हैं और इनमें समझौता नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि उन अपराधों को क्षमा नहीं किया जा सकता है जो सीआरपीसी की धारा 320 के तहत क्षम्य नहीं हैं। चाहे ऐसे अपराधों में अभियुक्त ने समझौता कर विवाद सुलझा लिया हो। समझौता उन्हीं अपराधों में हो सकता है जिसमें सात साल से कम की सजा का प्रावधान हो। हालांकि, इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2014 में नरेंद्र सिंह बनाम पंजाब सरकार केस में धारा 4307 के तहत समझौता होने पर अपराधों को समाप्त करने के फैसले को सही मान लिया था।
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