संसद में व्यवधान, अदालतों में बार-बार स्थगित सुनवाई होने से चिंतित राष्ट्रपति

नई दिल्ली ,26 नवंबर (आरएनएस)। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसदीय कामकाज में बार-बार पडऩे वाले व्यवधान और अदालतों में मामलों की सुनवाई बार-बार स्थगित होने को लेकर सोमवार को चिंता जताई।
यहां सोमवार को संविधान दिवस समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने यह भी कहा कि राजनीति के क्षेत्र में ‘न्यायÓ का उद्देश्य सिर्फ स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव और वयस्क मताधिकार का सार्वभौम इस्तेमाल करना ही नहीं है, बल्कि यह चुनाव प्रचार खर्च में पारदर्शिता रखने और बेहतर करने की भी मांग करता है तथा सरकार यह करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि संविधान ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों का बंटवारा किया है। इन तीनों को संविधान को कायम रखने की जिम्मेदारियां दी हैं ताकि वे इसकी (संविधान की) आशाओं एवं उम्मीदों को साकार कर सकें। उन्होंने कहा कि संविधान का संरक्षण करना और उसे मजबूत करना भारत के लोगों की साझेदारी के साथ इन तीनों संस्थाओं का साझा कर्तव्य है।
संविधान दिवस 26 नवंबर को मनाया जाता है। दरअसल, संविधान सभा ने भारत के संविधान को 26 नवंबर 1949 को अंगीकार किया था। यह 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ था। राष्ट्रपति ने संसद की कार्यवाही में बार बार पडऩे वाले व्यवधान को लेकर नाराजगी जताई। उन्होंने अदालतों में मामलों की सुनवाई बार-बार स्थगित होने के चलते वादियों को होने वाली परेशानी को लेकर भी चिंता जताई, हालांकि न्यायपालिका इसका सर्वश्रेष्ठ हल करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि संविधान को अंगीकार करना भारत की लोकतांत्रिक यात्रा में एक मील का पत्थर है। उन्होंने कहा कि संविधान में शायद सबसे ज्यादा गतिशील शब्द ‘न्यायÓ है। उन्होंने कहा कि न्याय एक एकल शब्द है। न्याय एक जटिल और स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति देने वाला शब्द है। न्याय हमारे संविधान और राष्ट्र निर्माण का साधन तथा लक्ष्य दोनों ही है।ÓÓ राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय को अवश्य ही व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। समाज का उद्भव और इसकी बदलती मान्यताएं, जीवनशैली और प्रौद्योगिकी को हर कोई इसे संरक्षित रखता है।
कोविंद ने कहा कि संविधान स्वतंत्र भारत का आधुनिक ग्रंथ है। संविधान नागरिकों को सशक्त करता है, वहीं नागरिक भी संविधान का पालन कर उसे मजबूत बनाते हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक न्याय सभी वयस्कों को राजनीतिक प्रक्रिया में समान भागीदारी प्रदान करता है। यह कानून के निर्माण और उनके उचित क्रियान्वयन में भी उन्हें भागीदार बनाता है। आर्थिक न्याय का उद्देश्य गरीबी का पूर्ण उन्मूलन करना, आजीविका अर्जित करने के लिए समान अवसर देना और उचित पारिश्रमिक देना है। कोविंद ने कहा कि यह एक विरोधाभास है कि कभी कभी नागरिकों को संविधान के मायने के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होती। उन्होंने प्रौद्योगिकी का हवाला देते हुए कहा कि यह न्याय प्रक्रिया में तेजी लाती है और एक चुनौती भी है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय समान अवसर मुहैया करता है। भारत में सामाजिक न्याय का दायरा आधुनिक परिदृश्य में बढ़ा भी है। इनमें स्वच्छ हवा, कम प्रदूषित शहर एवं कस्बे, नदियां एवं जल स्रोत, स्वच्छ जीवन की परिस्थितियां और हरित एवं पारिस्थितिकी हितैषी आर्थिक विकास आते हैं। वहीं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि संविधानिक नैतिकता एक समान रहनी चाहिए ये जज से जज के हिसाब से बदलनी नहीं चाहिए। लोगों को यह पता है कि वे वोट के जरिए ताकतवर और लोकप्रिय लीडर को भी सत्ता से हटा सकते हैं, ये संविधान की ताकत है।
संकट के क्षण में हमारा मार्गदर्शन करता है संविधान:रंजन गोगोई
संविधान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि जब इसे को लागू किया गया, तो हमारे संविधान की आलोचना की गई। सर इवर जेनिंग्स ने इसे बहुत बड़ा और कठोर बताया। समय ने आलोचनाओं को कमजोर कर दिया है और यह गर्व की बात है कि हमारे संविधान ने पिछले सात दशकों में बड़ी ताकत के साथ जीता है। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान संकट के क्षण हमारा मार्गदर्शन करता है। सत्तर सालों में संविधान खरा उतरा है और ये गरीबों की आवाज है। हमे संविधान की आवाज सुननी चाहिए नहीं तो विरोधी मतों का शौर अराजकता फैला देंगे।
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