आजाद हिन्द फौज के कारण भारत को मिली 1947 में आजादी : डॉ. ओमजी उपाध्याय
श्रेष्ट भारत के निर्माण में युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान: कुलपति डॉ. के.एल. वर्मा
रायपुर, 19 मार्च (आरएनएस)।राष्ट्रीय आंदोलन में सुभाषचंद्र बोस और आजाद हिंद फौज की भूमिका पर केन्द्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के निदेशक डॉ. ओमजी उपाध्याय ने कहा कि देश में इतिहास लेखन की आठ धाराएं साथ-साथ चल रही थी, जिसमें सुभाषचंद्र बोस की धारा भी शामिल थी। उन्होंने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में संचालित आजाद हिन्द फौज के भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के सहयोग के कारण ही अंग्रेजों ने 15 अगस्त 1947 को भारत को आजाद करने का निर्णय लेना पड़ा।
डॉ. ओमजी उपाध्याय ने कहा कि ब्रिटिश फौज के भारतीय सैनिकों पर अंग्रेजों को भरोसा नहीं था कि भारतीय सैनिक अंग्रेजों के निर्देश पर कार्य करेंगे। अंग्रेजों को ऐसी सूचना मिल रही थी कि ब्रिटिश भारतीय सैनिक आईएनए के मार्गदर्शन में कार्य कर सकते है। ऐसी स्थिति में अंग्रेजों की साम्राज्यवादी व्यवस्था ध्वस्त हो सकती है, इसलिए समय पूर्व 15 अगस्त 1947 को भारत को आजाद करने का निर्णय लिया। उन्होंने लुईफिशर के वाक्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि नेताजी देश भक्तों के देशभक्त थे और उनके होते हुए देश का विभाजन नहीं हो सकता। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता रविन्द्र भारती विश्वविद्यालय कोलकाता के इतिहास विभाग, विभागाध्यक्ष प्रो. एच. के. पटेल, कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. प्रवीण कुमार मिश्र ने भी अपने संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम के अध्यक्षता करते हुए पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. के.एल. वर्मा ने कहा कि देश भक्ति की भावना को जीवन्त बनाने और नई पीढ़ी को शोध के लिए नवीन दृष्टिकोण देने में यह आयोजन सफल होगा। उन्होंने श्रेष्ट भारत के निर्माण में युवाओं के योगदान को रेखांकित किया। तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी जिसमें कुल 63 शोध पत्रों का वाचन किया गया, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों के कुल 10 रिसोर्स पर्सन ने शोध पत्र का वाचन कर आधार वक्ता के रूप में शोधार्थियों के समक्ष अपने विचार व्यक्त किए। तृतीय दिवस के प्रथम सत्र के सत्राध्यक्ष डॉ. शंपा चौबे ने कहा कि सुभाषचंद्र बोस ने गुलामी को भारत का अभिशाप बताया और इसे स्वाधीन कराने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
रिसोर्स पर्सन डॉ. सुधी मण्डलोई ने नेशनल प्लानिंग कार्य को तैयार करने में सुभाषचंद्र बोस की भूमिका का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि सुभाषचंद्र बोस नेशनल प्लानिंग में भारत की एकता और समन्वय तथा आधारभूत ढांचा तैयार करने एवं भारत की बढ़ती जनसंख्या व गरीबी भूखमरी, रोग से लडऩे के लिए मसौदा तैयार करना चाहिए। उन्होंने कुटीर उद्योग व बृहत उद्योग के समन्वित विकास पर जोर दिया। इस सत्र में कुल 08 शोधपत्रों का वाचन शोधार्थियों के द्वारा किया गया। तृतीय दिवस 19 मार्च 2023 की शुरुआत सप्तम सत्र के रूप में हुई, जिसके इसके सत्राध्यक्ष डॉ. शंपा चौबे, रिसोर्स पर्सन डॉ. सुधि मंडलोई और रिपोर्टियर डॉ. शैलेन्द्र सिंह, सहायक रिपोर्टियर संदीप मेश्राम एवं कु. ममता थी। रिसोर्स पर्सन डॉ. सुधी मण्डलोई ने नेशनल प्लानिंग कार्य को तैयार करने में सुभाषचंद्र बोस की भूमिका का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि सुभाषचंद्र बोस नेशनल प्लानिंग में भारत की एकता और समन्वय तथा आधारभूत ढांचा तैयार करने एवं भारत की बढ़ती जनसंख्या व गरीबी भूखमरी, रोग से लडऩे के लिए मसौदा तैयार करना चाहिए। उन्होंने कुटीर उद्योग व बृहत उद्योग के समन्वित विकास पर जोर दिया। इस सत्र में कुल 08 शोधपत्रों का वाचन शोधार्थियों के द्वारा किया गया।
अष्टम व अंतिम सत्र के सत्राध्यक्ष सत्राध्यक्ष प्रो. रामकुमार बेहार ने गांधीजी का कांग्रेस पर नियंत्रण एवं उनके विचारों को छत्तीसगढ़ में भी चुनौती देने की बात कही। रिसोर्स पर्सन डॉ. पूजा शर्मा एवं रिपोर्टियर डॉ. सरिता दुबे रिसोर्स पर्सन डॉ. पूजा शर्मा ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस का धार्मिक दर्शन एवं धर्मनिरपेक्षता पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत की। इस सत्र में कुल 6 शोध पत्रों का वाचन किया गया। शोध पत्र वाचन के कढ़ी में शोधार्थी अनिल कुमार काटने ने आजाद हिंद फौज एवं महिलाओं की भूमिका में कैप्टन लक्ष्मी सहगल के योगदान को रेखांकित किए। पूजा कुमारी ने अपने शोध पत्र वाचन में झांसी रानी रेजीमेण्ट पर आधारित जानकारी प्रस्तुत की। शोधार्थी संदीप कुमार मेश्राम ने सेलुलर जेल में आई.एन.ए. के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत की। अतिथियों का छत्तीसगढ़ का राजकीय गमछा और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मान किया। इस अवसर पर रविन्द्र भारतीय विश्वविद्यालय कोलकाता के प्रो. एच. के. पटेल विभागाध्यक्ष प्रो. प्रियंबदा वास्तव, वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक डॉ. डी.एन. खूटे ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए।
तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में वरिष्ठ इतिहासकार बी.एल. भदानी, प्रो. एस. एल. निगम, प्रो. के.के. अग्रवाल, प्रो. ए.के. पटनायक, प्रो. रामकुमार बेहार, प्रो. मुकेश कुमार, इतिहास अध्ययनशाला के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. रमेन्द्र नाथ मिश्र, प्रो. आभा रूपेन्द्रपाल सहित वरिष्ठ इतिहासकार, संयुक्त संचालक जनसंपर्क धनंजय राठौर सहित शोधार्थी और बड़ी संख्या में भूतपूर्व और छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।