रायपुर, 17 मई (आरएनएस)। राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने आज हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग के तत्वाधान में आयोजित जल संरक्षण ‘‘कैच द रेन‘‘ विषय पर आयोजित ऑनलाईन कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे मनीषियों ने काफी समय पूर्व ही जल संरक्षण के महत्व को समझ लिया था, इसलिए उन्होंने एक शिक्षाप्रद सुन्दर दोहे की रचना की थी जो आज भी सामयिक है।रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून, पानी गए न उबरे, मोती, मानुष, चून’। इसलिए हम सभी को चाहिये कि हम जल को व्यर्थ बर्बाद न करें। सीमित मात्रा में ही जल का उपयोग करें। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री ने वर्षा जल को संचित करने के लिये नदी जोड़ों अभियान की परिकल्पना की थी जो कि देश के लिये अदभुत परियोजना थी। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी के पहले दशक में विश्व में दृष्टि डालें तो यह सत्य उभरता है कि इस दशक में पूरी मानवता कई प्राकृतिक विपदाओं से जूझ रही है। कभी बर्फबारी, कभी बाढ़, कभी समुद्री तूफान, कभी भूकम्प, कभी महामारी तो कभी जल संकट से पूरी मानवता त्रस्त है। बढ़ती आबादी के सामने सबसे बड़े संकट के रूप में जल की कमी ही उभर रही है। पर्यावरण के साथ निरंतर खिलवाड़ का यह नतीजा है कि आज पर्याप्त स्वच्छ जल के अभाव के संकट से पूरा विश्व गुजर रहा है। भारत इस समय कृषि उपयोग तथा पेयजल हेतु गंभीर जल संकट से गुजर रहा है और यह संकट वैश्विक स्तर पर भी साफ दिख रहा है।
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