बालिग महिला को अपनी पसंद व शर्तों पर पति के साथ रहने का हक : कोर्ट
प्रयागराज 29 दिसंबर (आरएनएस)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि बालिग महिला को अपनी पसंद व शर्तों पर पति के साथ बिना किसी बाधा के जीने का अधिकार है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज नकवी एवं न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने शिखा व अन्य की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया है। कोर्ट ने याची दंपती की सुरक्षा का आदेश दिया है। साथ ही अपहरण के आरोप में पति के खिलाफ 27 सितंबर 2020 को एटा कोतवाली देहात में दर्ज एफआईआर रद्द कर दी है। कोर्ट ने सीजेएम एटा व बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के रवैये पर तीखी टिप्पणी भी की है। कहा कि इनके कार्य से कानूनी प्रावधान समझने में इनकी क्षमता की कमी सामने आई है। कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 95 से स्पष्ट है कि यदि स्कूल का जन्म प्रमाणपत्र उपलब्ध है तो अन्य साक्ष्य द्वितीय माने जाएंगे। स्कूल प्रमाणपत्र में याची की जन्मतिथि चार अक्तूबर 1999 दर्ज है। यानी वह बालिग है।इसके बावजूद सीजेएम एटा ने कानूनी प्रावधान के विपरीत याची की अभिरक्षा उसके माता-पिता को सौंप दी। कोर्ट ने कहा कि याची बालिग है। वह अपनी मर्जी से जहां चाहे, जा सकती है। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश को कानून के विपरीत करार दिया। कोर्ट में उपस्थित याची ने कहा कि वह बालिग है और उसने सलमान से शादी की है। वह अपने पति के साथ रहना चाहती है। इस पर कोर्ट ने उक्त आदेश दिया। मामले के तथ्यों के अनुसार एटा की शिखा ने सलमान उर्फ करन से अंतर धार्मिक विवाह किया। शिखा के परिवार वालों ने अपहरण के आरोप में एफआईआर दर्ज करा दी। जिसके बाद पुलिस ने शिखा को सीजेएम अदालत में पेश किया। सीजेएम एटा ने पहले याची को बाल कल्याण समिति भेज दिया। वहां की रिपोर्ट के बाद उसके माता-पिता को सुपुर्द कर दिया। याची के पति सलमान उर्फ करन ने शिखा को इस अवैध निरुद्धि से मुक्ति दिलाने के लिए यह याचिका दाखिल की।
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