गडकरी ने विस्फोट करके किया जोजिला सुरंग के निर्माण कार्य का शुभारंभ

नई दिल्ली,15 अक्टूबर (आरएनएस)। लद्दाख के कारगिल इलाके को कश्मीर घाटी के साथ जोडऩे वाली जोजिला टनल के निर्माण का काम आज से शुरू हो गया है। टनल के निर्माण कार्य की शुरुआत केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने पहले विस्फोट के लिए बटन दबाकर की। इस टनल की लंबाई 14.15 किलोमीटर है और सामरिक रूप से ये काफी महत्वपूर्ण है। इसे एशिया की दो दिशा वाली सबसे लंबी टनल माना जा रहा है।
इस टनल का निर्माण पूरा होने के बाद लद्दाख की राजधानी लेह और जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के बीच पूरे साल आवागमन करना संभव हो पाएगा और दोनों के बीच के सफर में तकरीबन 3 घंटे का समय कम लगेगा। लद्दाख अब बाकी भारत से किसी मौसम में अलग नहीं होगा। हर बार सर्दियों में भारी बर्फबारी के चलते श्रीनगर-लेह-लद्दाख हाइवे बंद हो जाता है। मगर 14.5 किलोमीटर लंबी जोजिला सुरंग से यह परेशानी दूर हो जाएगी। इसे एशिया की सबसे लंबी सुरंग बताया गया है। यही नहीं, फिलहाल जो दूरी तय करने में साढ़े तीन घंटे लगते हैं, वह भी सिर्फ 15 मिनट में पूरी हो जाएगी। एक 18 किलोमीटर लंबी अप्रोच रोड भी बनेगी जो जेड मोड़ सुरंग से जोजिला टनल तक जाएगी। इस रोड पर ऐसे अवलांश प्रोटेक्शन स्ट्रक्चर्स बनाए जाएंगे जो दोनों सुरंगों के बीच हर मौसम में कनेक्टिविटी देंगे। फिलहाल 11,578 फुट की ऊंचाई पर जोजिला दर्रे में नवंबर से अप्रैल तक साल के छह महीने भारी बर्फबारी होने के कारण एनएच-1 यानी श्रीनगर-कारगिल-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर आवागमन बंद रहता है। अभी इसे वाहन चलाने के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक हिस्से के तौर पर पहचाना जाता है। यह परियोजना द्रास व कारगिल सेक्टर से गुजरने के कारण अपने भू-रणनीतिक स्थिति के चलते भी बेहद संवेदनशील है।
सर्वांगीण आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक एकीकरण होगा
सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के मुताबिक इस टनल का निर्माण पूरा होने पर श्रीनगर और लेह के बीच पूरा साल संपर्क जुड़े रहने से जम्मू-कश्मीर का सर्वांगीण आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक एकीकरण हो पाएगा। मंत्रालय के अनुसार यह टनल पूरा होने के बाद आधुनिक भारत के इतिहास में ऐतिहासिक उपलब्धि होगी। यह देश की रक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। खासतौर पर लद्दाख, गिलगित और बाल्टिस्तान क्षेत्रों में हमारी सीमाओं पर चल रही भारी सैन्य गतिविधियों को देखते हुए इसकी बेहद अहम भूमिका होगी।
कैसे बना प्लान, टेंडर और क्या है लोकेशन
इस सुरंग की नींव मई 2018 में ही रख दी गई थी। लेकिन टेंडर पाने वाली ढ्ढरु&स्नस् दीवालिया हो गई। उसके बाद हैदराबाद की मेघा इंजिनियरिंग को 4,509.5 करोड़ रुपये में इसका ठेका मिला। सरकार का दावा है कि वह प्रोजेक्ट की रीमॉडलिंग के जरिए 3,835 करोड़ रुपये बचा लेगी। पूरे प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 6,808.63 करोड़ रुपये है। जोजिला पास के नीचे करीब 3,000 मीटर की ऊंचाई पर यह सुंरग बनेगी। इसकी लोकेशन हृ॥-1 (श्रीनगर-लेह) में होगी।
क्यों खास है यह प्रोजेक्ट
यह सुरंग बनने के बाद श्रीनगर, द्रास, करगिल और लेह के इलाके हर मौसम में जुड़े रहेंगे। रणनीतिक रूप से भी यह बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इस रोड के जरिए सियाचिन में तैनात जवानों को भी सप्लाई जाती है। सर्दियों में बाकी देश से कटे रहने वाले यह इलाके जब पूरे साल देश से जुड़ेंगे तो उनका विकास तेजी से होगा। इसकी डिमांड पिछले 30 साल से हो रही थी। अब श्रीनगर-करगिल-लेह के रास्ते में हिमस्खलन का डर नहीं रहेगा।
सेफ्टी के लिए एक से एक इंतजाम
सुरंग के भीतर रोड के दोनों तरफ, हर 750 मीटर पर इमर्जेंसी ले-बाई होंगे। कैरियजवे के दोनों तरफ भी साइडवाक्स होंगी। यूरोपीय मानकों के अनुसार, हर 125 मीटर की दूरी पर इमर्जेंसी कॉल करने की सुविधा होगी। पूरी सुरंग में ऑटोमेटिक फायर डिटेक्शन सिस्टम लगेगा। मैनुअल फायर अलार्म का बटन भी होगा। हर ड्राइवर के पास पोर्टबल एक्सटिंग्विशर भी मौजूद होना चाहिए। सुरंग की दीवारों पर सीसीटीवी कैमरा लगाए जाएंगे। सुरंग शुरू होने और खत्म होने पर खंभे लगाकर कैमरा इंस्टॉल होंगे। सारा डेटा और इमेज/वीडियो कम्युनिकेशंस लाइंस के जरिए कंट्रोल रूम भेजा जाएगा।
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