भूपेश की छत्तीसगढिय़ा टीम ने बरसों पुरानी समस्याओं का किया अंत
0- छत्तीसगढ़ में स्थानीय मीडिया के अधिकारों की लूट खत्म
0- टूट गया ब्लैकमेलर तथाकथित बाहरी पत्रकारों का दबदबा
रायपुर ,21 अगस्त (आरएनएस)। छत्तीसगढ़ में बाहर के कुछ तथाकथित ब्लैकमेलर किस्म के पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के दबदबे के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहे स्थानीय पत्रकारों को अब जाकर राहत मिली है, जब राज्य की भूपेश बघेल सरकार ने उनकी सुध लेते हुए प्रभावी कदम उठाए हैं। सरकार की नयी व्यवस्थाओं ने ब्लैकमेलिंग और पीत-पत्रकारिता पर अंकुश लगाते हुए नये वातावरण का निर्माण किया है। अब स्थानीय पत्रकारों को जहां अधिक मान-सम्मान मिल रहा है, वहीं इन ब्लैकमेलर किस्म के बाहरी पत्रकारों की दुकानदारी ठप हो गई है।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण से स्थानीय पत्रकारों को आशा बंधी थी कि सरकारी और गैरसरकारी विज्ञापन स्रोतों में बढ़ोतरी होने का लाभ उनके संस्थानों को मिलेगा, जिससे कम वेतन अथवा वेतन में विलंब जैसी समस्याओं का अंत होगा। पत्रकारिता के क्षेत्र में आर्थिक निश्चिंतता आने से वे और भी मुखर पत्रकारिता कर पाएंगे। राज्य बनने से पहले छत्तीसगढ़ के राज्यस्तरीय स्थानीय विज्ञापन स्रोतों के बड़े हिस्से पर भोपाल तथा अन्य महानगरों के पत्रकारों का कब्जा था, उम्मीद थी इस स्थिति में बदलाव होगा। लेकिन अपने पुराने संपर्कों का लाभ उठाते हुए राज्य के बाहर के तथाकथित ब्लैकमेलर पत्रकार छत्तीसगढ़ में निर्मित नयी संभावनाओं का भी दोहन करते रहे। इस स्थिति में उन्हें जहां दोहरा लाभ हो रहा था, वहीं स्थानीय पत्रकारों के अधिकारों का हनन हो रहा था। ये ब्लैकमेलर पत्रकार छत्तीसगढ़ में जमकर चांदी काट रहे थे। राजधानी के पॉश इलाकों में इनके कई बड़े-बड़े प्लाट और बंगले तक देखे जा सकते हैं।
पिछली सरकार के दौरान छत्तीसगढ़ के पत्रकारों ने अनेक बार नेताओं, मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री तक का ध्यान आकर्षित करते हुए इस बात पर जोर दिया था कि स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता से साथ उठाने वाली स्थानीय मीडिया को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। लगातार 18 वर्षों तक यह मांग की जाती रही। जब छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व में नयी सरकार का गठन हुआ, तब भी यही मांग दोहराई गई। नयी सरकार ने जब सलाहकारों की नियुक्ति की, तब पत्रकारों की इन्हीं मांगों के चलते वरिष्ठ पत्रकार रुचिर गर्ग को अपना मीडिया सलाहकार नियुक्त किया। श्री गर्ग अनेक स्थानीय समाचार पत्रों में संपादक का दायित्व निभा चुके हैं। इधर जनसंपर्क विभाग में डी.डी. सिंह को सचिव तथा तारन प्रकाश सिन्हा को आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया। श्री सिंह जहां आदिवासी पृष्ठभूमि से आते हैं, ठेठ छत्तीसगढिय़ा अफसर के रूप में उनकी पहचान रही है। तारन प्रकाश सिन्हा भी छत्तीसगढ़ में ही जन्मे, पले और बढ़े हैं। इन नियुक्तियों का उद्देश्य बेहतर समन्वय के साथ स्थानीय मीडिया की समस्याओं और मांगों का निराकरण था। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की इसी नयी ठेठ छत्तीसगढिय़ा टीम की कार्यशैली का यह परिणाम है कि राज्य में वितरित की जाने वाली गिनती की प्रतियों के साथ स्वयं को औपचारिक रूप से उपस्थित दर्शाने वाले बाहरी पत्र-पत्रिकाओं का दबदबा टूटा है। पत्रकारों की अधिमान्यता के दायरे में विस्तार हुआ है। अब प्रदेश के ग्रामीण पत्रकारों को भी अधिमान्यता सूची में जगह मिलने लगी है। पत्रकारों को दी जाने वाली चिकित्सा सहायता और सम्मान निधि में भी बढ़ोतरी हुई है। पिछली सरकार के समय से पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर कानून बनाने की मांग की जा रही थी, जिसकी सुनवाई करते हुए भूपेश बघेल सरकार ने पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की दिशा में भी पहल की है।
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