चीन की कंपनियों से आए पैसों का सार्वजनिक पटल पर कोई हिसाब किताब नहीं : पवन खेड़ा
नई दिल्ली ,28 जुलाई (आरएनएस)। अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि लगभग तीन महीनों से लगातार लद्दाख में भारतीय सीमा में चीन की घुसपैठ की खबरें हम और आप सुन रहे हैं। सैटेलाइट के तस्वीरों के माध्यम से, सेवानिवृत अधिकारियों के माध्यम से, रक्षा विशेषज्ञों के माध्यम से एवं स्थानीय नागरिकों के माध्यम से, चीन की शर्मनाक घुसपैठ की खबरें निरंतर आ रही हैं। एक तरफ तो प्रधानमंत्री चीन को क्लीन चिट दे देते हैं यह कहते हुए कि हमारी सीमा में कोई नहीं घुसा और दूसरी तरफ रक्षा मंत्री एवं नार्दन कमान के आला अधिकारी कुछ और स्थिति बयान करते हैं। यह भी जानकारी मिली है कि चीन के विरूद्ध बोलने पर कैबिनेट के मंत्रियों पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने पाबंदी लगा दी है।
पिछले कुछ सप्ताहों में, हमने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चीन प्रेम के कई उदाहरण आपके समक्ष रखे। वे उदाहरण जो गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए नरेन्द्र मोदी जी का चीन के प्रति विशेष लगाव हो अथवा अब प्रधानमंत्री बनने के पश्चात हो। कैसे गुजरात में चीन की कंपनियों को प्राथमिकता दी जाती रही है यह सर्वविदित है। चीन की कंपनियों से पैसे आए, जिन पैसों का कोई हिसाब किताब सार्वजनिक पटल पर नहीं रखा जा रहा; पिछले 5 साल में हमने यह भी देखा कि कैसे अकेले गुजरात राज्य में स्मार्ट सिटी, टेक्सटाइल पार्क, इंडस्ट्रियल पार्क आदि के तहत चीन के साथ 43 हजार करोड़ रुपए के करारनामें हुए।
जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो 2011 में मोदी जी ने गुजरात के स्कूलों में मेंडारिन भाषा लाने की भी घोषणा कर दी थी।
2017 के विधानसभा चुनाव में ग्लोबल टाइम्स जो कि चीन की सरकार का मुखपत्र माना जाता है कि लिखता है चीनी कंपनियां चाहती हैं कि गुजरात में एक बार फिर नरेन्द्र मोदी की ही पार्टी की जीत होÓÓ अगर गुजरात में मोदी को बडी जीत मिलती है तो वह चीनी कंपनियों के लिए फायदेमंद हो सकता हैÓÓ चीन की कुछ कंपनियों को डर है कि अगर गुजरात में अगर मोदी की हार होती है तो केन्द्र में उनके द्वारा आर्थिक फैसले लिए जा रहे हैं उन पर ब्रेक लग जाएगाÓÓ
दो देशों के संबंधों में कूटनीति के साथ-साथ व्यापार एक महत्वपूर्ण पहलू होता है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। लेकिन 2 देशों के व्यापारिक रिश्तों में कोई भी देश अपने सामरिक हितों को ताक पर रखकर व्यापार नहीं करता। वैश्वीकरण के इस युग में कंपनियां व निवेश भौगोलिक सीमाओं से कमोवेश नहीं बंधते, यह बात तो किसी हद तक समझ में आती है, लेकिन जब चीन की एक ऐसी कंपनी को जम्मू कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में एक संवेदनशील कार्य के लिए पिछले दरवाजे से प्रवेश होने दिया जाता है तब वह चिंता का विषय बन जाता है। चिंता तब और बढ़ जाती है जब यह पता चले कि चीन की यह कंपनी न केवल चीन की सरकार के नियंत्रण में है, अपितु विश्व बैंक द्वारा पिछले वर्ष इस पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते पाबंदी भी लगाई गई है।
डोंगफेंग नामक यह कंपनी विश्व के अनेक देशों में सक्रिय है एवं पाकिस्तान के साथ इसके विशेष संबंध हैं। पाकिस्तान का बहुचर्चित नंदीपुर पावर प्राजेक्ट, जिसमें बाद उस वक्त के प्रधानमंत्री को जेल जाना पडा, इसी कंपनी ने बनाया था एवं चीन के महत्वकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। ऊर्जा के क्षेत्र में यह कंपनी हार्डवेयर एवं साफ्टवेयर इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स दोनों में सक्रिय है जिसके तहत पावर ग्रिड, स्मार्ट मीटर, मीटर के अंदर लगने वाली रेडियो फ्रीक्वेंसी टेक्नोलॉजी आदि में यह कंपनी व्यापक समाधान के लिए जानी जाती है।
जम्मू कश्मीर में स्मार्ट मीटर लगाने का ठेका जिस कंपनी को मिला है, उसने रिमोट कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का ठेका डोंगफेंग को दे दिया है। उक्त ठेका ग्रामीण विद्युतीकरण निगम, ऊर्जा मंत्रालय ने दिया है। जिसके तहत जम्मू एवं श्रीनगर में एक-एक लाख स्मार्ट मीटर लगने हैं। स्मार्ट मीटर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रेडियो फ्रीक्वेंसी अथवा रिमोट कम्युनिकेशन सिस्टम होता है। ऐसा महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील काम, एक बेहद संवेदनशील इलाके में होने वाला काम, एक ऐसी कंपनी को मिल जाए जो कि सीधे चीन की सरकार एवं सेना को रिपोर्ट करती हो तो यह विषय राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय हो जाता है।
2017 में जी कृष्ण रेड्डी जो कि उस वक्त भारतीय जनता पार्टी के एक सांसद थे और आज गृह राज्य मंत्री हैं ने इस कंपनी के विरूद्ध ट्वीट करके अपनी ही सरकार को आगाह भी किया था।
विशेषज्ञों का यह मानना है कि इस तरह की टेक्नोलॉजी के जरिये दुश्मन जब चाहे तब उस इलाके में ब्लैक आउट कर सकता है। उपभोक्ताओं का संवेदनशील डेटा भी गलत हाथों में जाने का खतरा रहता है।
आज पूरे विश्व में साइबर हमलों को लेकर हर देश सजग रहने की चेष्टा कर रहा है। अभी हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की संसद पर साइबर हमला हुआ था एवं इस हमले के लिए ऑस्ट्रेलिया ने सीधे-सीधे चीन को जिम्मेदार ठहराया था। अकेले जून में इस वर्ष चीन के हैकर्स ने भारत के बैंकिंग क्षेत्र पर चालीस हजार साइबर हमले किए थे।
आज की स्थिति में जब हमारे बहादुर जवान सीमाओं पर दुश्मन का डटकर मुकाबला कर रहे हों, चीन लगातार वादाखिलाफी कर रहा हो एवं पूरा देश लद्दाख की सीमा को लेकर चिंतित हो तब हमारी सरकार जम्मू कश्मीर के लाखों नागरिकों के जीवन को खतरे में डालने का काम करे तो सरकार की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
हम प्रधानमंत्री से यह जानना चाहते हैं कि सीमावर्ती राज्यों में ऊर्जा जैसे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र में चीन की एक विवादास्पद कंपनी को क्यों आने दिया जा रहा है ?
हम यह भी जानना चाहते है कि एक तरफ तो चीन से संबंधित ्रश्चश्चह्य पर पाबंदी लगाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर चीन की कंपनी के हाथों में जम्मू कश्मीर के नागरिकों का महत्वूपर्ण डेटा क्यों सुपर्द किया जा रहा है ?
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