(महत्वपूर्ण)(नईदिल्ली)जुमलेबाजी से नहीं चलता देश:सिंघवी

नईदिल्ली,08 जुलाई (आरएनएस)। डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि हम एक व्यापक मुद्दा, बल्कि कई मुद्दे जो एक साथ मिलकर और भी व्यापक हो जाते हैं; आपके जरिए आज वो उठाने का प्रयत्न कर रहे हैं। क्योंकि इसमें जो ज्यादा व्यापकता, लार्जर इशू है, वो ये है कि आप दिनभर हमें सीख देते हैं, उपदेश देते हैं, बड़े-बड़े जुमले देते हैं कि भारत की पैठ ये है, आन ये है, बान ये है, मान ये है, राष्ट्रवाद ये है, छाती 56 इंच की नहीं 65 इंच की है। लेकिन सच्चाई क्या है कि उधर जहां हमें आम जीवन पर, विद्यार्थी के जीवन पर छूता है तो अमेरिका ऐसे ऐंठ कर रहा है, जैसे भारत नाम का कोई देश ही नहीं है। जहाँ हमें आम आदमी के लिए तकलीफ होती है, दर्द होता है, वेदना होती है। वहाँ कुवैत हमारे श्रमिकों के विषय में एक अपने आप निर्णय लेता है, जिसमें कोई कंसल्टेशन नहीं है, कोई आपसी विचार-विमर्श नहीं है। हमारी पैठ कहाँ हैं, हमें पता नहीं है। अमेरिका के एच-1बी वीज़ा में चार में से तीन भारतीय इन्वोल्वड हैं, वो भी एक तरफा निर्णय ले लेते हैं। हमारी भारत की डिप्लोमेटिक पैठ कहाँ हैं? हमारी आर्थिक शक्ति कहाँ हैं? हमारे सुपर पॉवर के देश की छवि कहाँ है? ये प्रश्न हम आपके जरिए उठाना चाहते हैं। मैंने इसलिए कहा आपसे ना पूर्व, ना पश्चिम मोदी जी दोनों दिशाओं में हमारी पैठ नहीं है। एक तरफ अमेरिका सुनने को तैयार नहीं है, दूसरी तरफ कुवैत सुनने को तैयार नहीं है, सबसे बड़ा और सबसे छोटा देश।
लेट मी स्टॉर्ट विथ दिस मोस्ट रीसेंट, सबसे हाल में जो हुई चीज है कि विद्यार्थियों को बिना किसी कारण, बिना किसी गलती, बिना किसी स्त्रोत, बिना कुछ किए अगर यूनिवर्सिटी ऑनलाइन कोर्स करती है, तो सैंकड़ों विद्यार्थी त्रिशंकु की तरह बीच में खड़े हो जाएंगे, ना इधर के रहेंगे, ना उधर के रहेंगे, ये सूचना आई है। अब मेरा प्रश्न है अपने आपसे, आपसे, देश से कि ये क्या सरकार का सरकार के स्तर पर, मैं तो समझता हूं क्या आम शिक्षा मंत्रालय के स्तर पर इतनी छोटी चीज सॉर्ट-आउट नहीं हो सकती थी? आपको ध्यान रहे कि मैं एक विद्यार्थी हूं, जिसके पास वीज़ा है। ये नहीं कि मैं वीज़ा के बिना हूं। आज मुझे मझधार में छोड़ दिया जाता है, क्योंकि किसी ने ऑनलाइन कोर्स बदल दिया। ये पूरी स्थिति, नीतिगण निर्णय यूएस की सरकार लेती है जो जानती है की चीन और भारत के, इन दो देशों के विद्यार्थी संख्या में सबसे ज़्यादा हैं। अब आपको इसके बारे में इल्म नहीं है। आपको होने के बाद ये मालूम पड़ता है कि ये कर लेंगे, वो कर लेंगे, बातचीत करेंगे, बातचीत चल रही है। आपको मालूम है कि उस कोर्स का जो वार्षिक समय है, वो कितनी जल्दी शुरु होने वाला है? कितनी जल्दी अंत होने वाला है? लोगों को तैयारियां करनी पड़ती है, लोगों को जाना पड़ता है, लोगों को ट्रैवल करना पड़ता है। उनके माता-पिता के लिए, परिवारों के लिए कितनी ज्यादा अननिश्चितता है, बच्चों के लिए कितनी अनसर्टेनिटी है। ये एक बहुत बड़ा मानवीय इशू है। इसमें भारत सरकार सोती हुई पाई गई है। भारत सरकार को बहुत जबरदस्त, बड़े पैमाने पर हल्ला करना चाहिए था और वो सभी चीजें जो शैक्षिक हों, डिप्लोमेटिक हों, आर्थिक हों, स्ट्रैटेजिक हों, जो भी हों; उसका बहुत पहले इनका हल करना चाहिए था। अब कम से कम तुरंत भविष्य में हमें बता कर अवगत करके करना चाहिए।
नंबर दो मुद्दा– ये तो भारत से ज्यादा किसी देश से संबंधित नहीं है कि आप चार में से तीन लोग जो भारतीय हैं, उनके लिए अचानक एकपक्षीय नीति द्वारा लगभग 85 हजार लोगों या एच-1बी वीज़ा होल्डर को दुष्प्रभाव कर लेते हैं। इसमें भी वही हुआ, ये थोड़ा पुरानी है, ये सबसे रिसेंट नहीं है। जिसमें हम पिछले कई हफ्तों, महीनों से कुछ कर नहीं पाए। आपको बताया जाता है कि कितने प्रभावशाली हैं हम, कितना हमारे अंदर जैसा मैंने बताया प्रभाव रखते हैं। लेकिन जमीनी सच क्या है, एच-1बी वीज़ा वो है जो भारत की मूल लोग जो सबसे प्रज्वलित कर रहे हैं, भारत का नाम रोशन विदेश में कर रहे हैं, वो इस्तेमाल कर रहे हैं। सबसे ज्यादा पैसा भेजते हैं, सबसे ज्यादा फेमस माने जाते हैं, निष्ठावान जिन्होंने अपनी एक छाप अमेरिकन सोसाईटी, समाज में बनाई है, उनके ऊपर आपने ऐसा प्रहार होने दिया? मैं विनम्रता से कहूंगा माननीय मोदी जी ये बड़े-बड़े रोड़ शो अमेरिका में, ये बड़े-बड़े हाथ मिलाकर ताली बजाने वाले, स्टेज पर ह्युस्टन उत्तर अमेरिका में इवेंट मैनेजमेंट का सही जमीनी सच ये है। इसका जवाब देश मांगता है, क्योंकि ये इनके पेट में, इनके परिवारों के पेट पर, भारत की छवि पर यह सीधा आघात है।
तीसरा इसमें पहलू है कि एक तरफ तो पैंडेमिक (महामारी) की हालत चल रहे हैं और उससे ज्यादा पैंडेमिक की आप जानते ही हैं, पैंडेमिक को एक बार आप छोड दीजिए, कोरोना से पहले ही, जनवरी के पहले ही क्या रोजगार की फिगर है, मैं अंत में दूंगा आपको। पैंडेमिक के बाद जो हालत है, वो एक एडिशनल चीज है। लेकिन इसके दौरान कुवैत ने सीधा जिसकी पूरी आर्थिक स्थिति हम पर आश्रित है, जो हम पर निर्भर है, जिस देश को हम उठाए हुए हैं अपने कंधों पर, जहाँ पर 70 प्रतिशत इस प्रकार के श्रमिक भारत से हमारे दक्षिण भारत के दोस्त बहुत हैं वहाँ पर; तमिलनाडु और केरल दो विशेष प्रदेश हैं, लेकिन और भी भारत में हैं, इन सबका आप अचानक एक कोटा बांध देते हैं। कोटा ये है कि 10 लोग हमारे देश में टोटल जनसंख्या है, हम इसमें से 3 लोग से अधिक रखेंगे नहीं बाहर से, तीन लोगों का जो अनुपात होगा, उसके अनुसार आपके 8 लाख बाहर चले जाएंगे। 8 लाख भारतीय, उस देश की पूरी पोपुलेशन है 14.5 लाख। ये आपको याद रहे, पूरी पोपुलेशन।ये आपको याद रहे, पूरी पोपुलेशन। तो उसमें से आधी पोपुलेशन भारतीयों की निष्कासित, डिपोर्टेशन, एक्सट्रैडिशन, निकालना, देश निकालना, जो भी कह दीजिए आप, क्या कर रही थी सरकार? माननीय मोदी जी इतना यूएई जाते हैं, अवार्ड मिलता है, कभी वहाँ से अवार्ड लेते हैं, कभी देते हैं, इतनी बड़ी बातें होती हैं और कुवैत जैसा सिर्फ देश की साइज और उसकी आर्थिक स्थिति नहीं है, वो पूरी तरह से हमारे कारण उन्नति कर रहा है इन लोगों पर, ना पूछ, ना ताछ, ना वेट, एक नीति बनी, कानून पास हुआ, उच्चतम उनकी असेंबली है, वहाँ पर पारित हुआ, संवैधानिक करार किया गया, आप क्या कर रहे थे? ये महत्वपूर्ण प्रश्न हैं, क्योंकि ये हम भारतीयों के प्रश्न हैं? आप पूछिए अपने केरल वाले दोस्त से, अपने तमिलनाडु वाले देश से, उसके पेट पर कैसी लात है? सबसे सिंगल ज्यादा समुदाय जो इससे दुष्प्रभावित हुआ है, वो भारतीय हैं।
अंतिम बात, आप जानते हैं, लेकिन उसको परिप्रेक्ष्य और संदर्भ में डालना आवश्यक है। ये सब कब हो रहा है- ये सब हो रहा है एक संदर्भ में। उसका संदर्भ है एक जनवरी से पहले, एक जनवरी के बाद। अभी आप कोरोना का बहाना नहीं बना सकते, इसलिए मैं जनवरी के पहले की बात करता हूं, नहीं तो आप शुरुआत कर देते हैं कोरोना का बहाना बनाने की। बिना कोरोना के आपको मालूम है कि कितने रोजगार इस देश में सीएमआईई का आंकड़ा आपके पास है; सबसे ज्यादा गिरावट रोजगार की हमारे देश में अब हुई है और आज भी जो आंकड़ा ऐब्सलूट रोजगार का है 2020 में, वो ऐब्सलूट आंकड़ा 2019 से कम है। मैं आपको बता देता हूं, ये आंकड़ा पिछले वर्ष में था 40.4 करोड़ रोजगार, पिछले फाइनेंशियल वर्ष में, इस वर्ष में है 37.4 करोड़। हम रेट ऑफ ग्रोथ अनइम्पलोयमेंट की बात नहीं कर रहे हैं। हम रेट ऑफ ग्रोथ अनइम्पलोयमेंट कम होने की बात नहीं कर रहे हैं। अब ऐब्सलूट फिगर में रोजगार गिर रहा है, तो एक तरफ तो ये हो रहा है। दूसरी तरफ अप्रैल में कोरोना के बाद 12 करोड़ एक महीने में नुकसान हुआ है। अब ये बात एक महीने में है 12 करोड़ रोजगार की। अब ये बात सही है कि मई और जून में बहुत जबरदस्त फायदा हुआ है रोजगार का, 7 करोड़ का और ये मैं बताना चाहता हूं आपको। मोदी जी चाहें तो हमें प्रणाम करें, देश को प्रणाम करें कि मनरेगा है। ये 7-8 करोड़ 12 में से 90 प्रतिशत कृषक मनरेगा पर आधारित, डेली वेजर इत्यादि लोग हैं। 12 करोड़ जो लात पड़ी है देश पर वो पड़ी है अर्बन लोगों पर, शहर वाले लोगों पर, ऐसे रोजगार जो वापस नहीं आए हैं, एमएसएमई को, सेल्फ इम्पल्योड को, इंडिविजुअल को, वो वापस नहीं आए हैं। जो वापस 7-8 करोड़ आए हैं, वो मनरेगा की वजह से आए हैं, जिसकी वजह से आप हमें गालियां और जुमले सुना रहे थे कुछ वर्ष पहले।
तो ये 4 पक्ष हैं, इनको अगर आप जोडि़ए तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की मानहानि हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आप चुन-चुन कर भारत के उन वर्गों पर दुष्प्रभाव कर रहे हैं, प्रहार कर रहे हैं, आघात कर रहे हैं, जो अपने श्रम से, अपने हुनर से भारत का नाम रोशन करते हैं और कई दशकों से करते आए हैं। डोमेस्टिकली, लोकली आज रोजगार पर लात एक के बाद एक पड़ रही है। उसके दौरान ये हो रहा है कि आपके देश में जो हाई वेल्यू, वाईट कॉलर अर्नर हैं, जो ब्लू कॉलर अर्नर हैं, दोनों पर अत्यंत दुष्प्रभाव हो रहा है। इन सबके बीच में आपके पास कोई हल नहीं है। आपने कोई नीति नहीं बनाई। प्रधानमंत्री जी सब काम को छोड़कर अमेरिका और कुवैत इसके लिए जाना चाहिए। आपने एक भी कोई ठोस चीज क्या की, जिससे कि ये नीतियां वापस ली जाएं? करोड़ों-लाखों भारतीय एक आवाज में ये प्रश्न का उत्तर मांग रहे हैं, लेकिन जवाब की जगह सन्नाटा मिल रहा है।
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