डा. आलोक शुक्ला की रिट याचिका पर अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद

0-नॉन मामले में एफआईआर दर्ज होने के 5 साल बाद नाम शामिल क्यों किया गया?
0-प्रवर्तन निदेशालय की कार्यवाही संदेह के घेरे में
रायपुर, 01 jully  (आरएनएस)। धनशोधन निवारण अधिनियम, 2000 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने की डा आलोक शुक्ला की रिट याचिका दायर पर सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश तथा न्यायाधिपति पार्थ प्रीतम साहू की खंड पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय एवं केन्द्र सरकार दो सप्ताह में विस्तृत उत्तर देने हेतु नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अर्शदीप सिंह एवं अधिवक्ता आयुष भाटिया ने पैरवी की। केन्द्र सरकार तथा प्रवर्तन निदेशालय की ओर से विद्वान एसिस्टेंट सालिसिटर जनरल गोपाकुमार एवं शासकीय अधिवक्ता सौरभ कुमार पांडे उपस्थित थे। रिट याचिका पर अगली सुनवाई 2 सप्ताह के बाद होगी।
संविधान के अनुच्छेद 226 एवं 227 के अंतर्गत दायर की गई इस रिट याचिका में धनशोधन निवारण अधिनियम, 2002 भारत को संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 20, 21 एवं 300 क के विपरीत होने के कारण उच्च न्यायालय से इस अधिनियम को गैर संवैधानिक और शून्य घोषित करने की प्रार्थना की गई है।
उल्लेखनीय है कि धनशोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम 2005 के व्दारा धनशोधन निवारण अधिनियम की धारा 45 में संशोधन करके धशोधन के अपराध को असंज्ञेय बनाया गया था परन्तु वित्त अधिनियम 2019 के व्दारा धनशोधन अधिनियम की धारा 45 के नीचे एक स्पष्टीकरण जोड़ दिया गया जिसमें कहा गया है कि धनशोधन का अपराध संज्ञेय और अजमानतीय होगा। उच्च न्यायालय में प्रस्तुत रिट याचिका में कहा गया है कि मूल अधिनियम के प्रावधानों को स्पष्टीकरण के व्दारा नहीं बदला जा सकता इसलिये इस स्पष्टीकरण का प्रभाव शून्य है। याचिकार्ता डा आलोक शुक्ला को छत्तीसगढ़ राज्य में धान खरीदी एवं पी.डी.एस. के क्म्प्यूटरीकरण के लिये ”लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिये प्रधानमंत्री पुरस्कारÓÓ से सम्मानित किया गया है जो सरकारी कर्मचारियों के लिये देश का सर्वोच्च पुरस्कार है। इसके अतिरिक्त डा. आलोक शुक्ला ने छत्तीसगढ़ में मितानिन कार्यक्रम लागू किया था जिसके आधार पर केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के आशा कार्यक्रम की परिकल्पना की गई है। देश के उपनिर्वाचन आयुक्त के रूप में डा. आलोक शुक्ला ने मतदान के समय वोटिंग मशीनों में छपने वाली वोटर पर्ची मशीन के विकास में बड़ा योगदान दिया है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक चुनावों में उन्हें प्रेक्षक के रूप में भेजा गया है और भारत निर्वाचन आयोग में रहते हुए लोकसभा के 2 आमचुनाव एवं अनेक राज्यों के विधान सभा चुनाव संपन्न कराये हैं. वे एक जाने माने लेखक हैं और उनकी 2 पुस्तकें ई.वी.एम. की सच्ची कहानी, तथा धात मतदान के कहानियां विशेष रूप से लोकप्रिय हुई हैं। हाल ही में कोरोना लॉकडाउन के सयम उन्होने बच्चों के ऑनलाइन पढ़ाई का पड़ई तुंहर दुवार नामक पोर्टल विकासित किया जिस पर 20 लाख से अधिक विद्यार्थी नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त उन्होने शासन के निर्देश पर फल सब्जी की घर पहुंच एप सीजी हाट के विकास का कार्य भी किया। शासन ने उन्हें लोगों को घर पर ही चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिये टेलीमेडिसिन एप बनाने में चिप्स की मदद करने का निर्देश भी दिया है, तथा वे शासन की अंग्रेज़ी माध्यम के उत्कृष्ट स्कूल बनाने की योजना में भी जी जान से लगे हैं। याचिका में बताया गया है कि तथाकथित नान प्रकरण में न्यायालय में 153 गवाहों में बयान हो चुके हैं और इन बयानों से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता के विरुध्द कोई सबूत नहीं है। वर्तमान में नान प्रकरण पर माननीय उच्च न्यायालय व्दारा स्थगन आदेश दिया गया है। यह बात भी उल्लेखनीय है कि नान प्रकरण की एफ.आई.आर. 12 फरवरी 2014 को दर्ज की गई थी, जिसमें डा. आलोक शुक्ला को नामजद नहीं किया गया था। इसके लगभग 4 साल के बाद विधानसभा चुनावों के लिये मतदान हो जाने के बाद और निर्वाचन का परिणाम आने के कुछ दिन पूर्व चुनावों में हार की आशंका से और राजनीतिक विव्देष से अचानक याचिकाकर्ता के विरुध्द न्यायालय में चालान पेश कर दिया गया। मूल एफ.आई.आर. दर्ज होने के 5 साल बाद अचानक बिना कोई कारण बताए प्रवर्तन निदेशालय ने नान की एफ.आई.आर. के आधार पर प्रकरण दर्ज कर लिया। इस प्रकरण में प्रवर्तन निदेशालय के रायपुर कार्यलय व्दारा जांच की जा रही थी और अनेक लोगों के बयान रायपुर कार्यालय व्दारा दर्ज किये जा चुके थे, जिनसे यह सिध्द हो चुका था कि याचिकाकार्ता निर्दोष है, तभी अचानक बिना कोई कारण बताए प्रवर्तन निदेशालय ने यह प्रकरण रायपुर से नई दिल्ली स्थानांतरित कर दिया। कोरोना वायरस के समय में जब दिल्ली की यात्रा करना किसी के लिये भी खतरनाक हो सकता है, याचिकाकर्ता को दिल्ली आकर बयान देने के लिये बाध्य किया जा रहा है, जबकि अन्य लोगों की तरह याचिकाकर्ता का बयान भी रायपुर में ही लिया जा सकता था। याचिकाकर्ता से एक पैसे की भी बरामदगी नहीं हुई है। याचिकाकर्ता पर अनुपातहीन संपत्ति होने का कोई प्ररकण नहीं है और उसे शासन से भी आज तक कोई नोटिस तक नहीं मिला है। ऐसे में प्रवर्तन निदेशालय में यह कार्यवाही अधिकारिताविहीन और राजनीतिक विव्देष से की गई कार्यवाही है।
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