(नईदिल्ली)गांवों को मनरेगा से मजबूत बनाया जा सकता है: सोनिया

0-सरकार को अब समझ आया मनरेगा का महत्व
नईदिल्ली,08 जून (आरएनएस)। अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना (मनरेगा) को लेकर उलजलूल बोलने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोरोना संकट के दौरान इसकी अहमियत ठीक तरह से समझ आयी है और उन्हें पूरा एहसास हो गया है कि गांवों को इस योजना से मजबूत बनाया जा सकता है इसलिए बराबर गरीबों को लाभ पहुंचाने के लिए इसे महत्व देना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि मोदी ने इस योजना के लिए आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग कर कांग्रेस पार्टी पर लगातार हमला बोलते हुए इसे ‘कांग्रेस की विफलता का एक जीवित स्मारकÓ तक कहा था और मोदी सरकार ने मनरेगा को खत्म करने, इसे खोखला करने तथा कमजोर करने की पूरी कोशिश की लेकिन कोविड-19 महामारी और इससे उत्पन्न आर्थिक संकट ने मोदी सरकार को इस योजना की महत्ता का एहसास कराया है।
उन्होंने कहा कि मोदी को पद संभालने के बाद इस योजना का महत्व समझ तो आ गया था इसलिए उनकी सरकार ने स्वच्छ भारत तथा प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कार्यक्रमों से जोड़कर मनरेगा का स्वरूप बदलने की कोशिश की। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस सरकार की इस योजनाओं का नाम बदलने का भी पूरा प्रयास किया और मनरेगा श्रमिकों को भुगतान करने में अत्यंत देरी की गई तथा उन्हें काम तक दिए जाने से इंकार कर किया गया।
सोनिया ने कहा कि लॉकडाउन के कारण पूरे देश के मजदूरों में रोजी रोटी को लेकर हाहाकार मचा तो मनरेगा गांव में श्रमिकों के जीवन का संबल बना। इसने मोदी सरकार को आभास दिलाया कि पिछली कांग्रेस सरकार के समय फ्लैगशिप ग्रामीण राहत कार्यक्रमों को दोबारा शुरू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यह एहसास होने के बाद वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल में ही मनरेगा बजट में एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कुल आवंटन करने की घोषणा की और मई में 2.19 करोड़ परिवारों ने मनरेगा के तहत काम की मांग की जो आठ साल में सबसे ज्यादा है।
गांधी ने कहा कि कोरोना को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के कारण रोजगार को मोहताज हुए निराश मजदूर तथा कामगार विभिन्न शहरों से समूहों में अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं। इन प्रवासी श्रमिकों के पास गांव में रोजगार और सुरक्षित भविष्य नहीं है तथा उनके समक्ष अभूतपूर्व संकट के बादल मंडरा रहे हैं इसलिए मनरेगा की जरूरत पहले से कहीं और ज्यादा है।
उन्होंने कहा कि इन मेहनतकश लोगों का विश्वास पुन: स्थापित हो इसके लिए केंद्र सरकार को उनकी मदद कर उन्हें राहत देनी चाहिए और इसके लिए सबसे पहले उनका मनरेगा का जॉब कार्ड बनना जरूरी है। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने देश के ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए जिस पंचायतीराज तंत्र को सशक्त बनाने का काम किया अब मनरेगा को लागू करने की मुख्य भूमिका उन्हीं पंचायतों को दी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि जन कल्याण की योजनाएं चलाने के लिए पंचायतों को और मजबूत करने की आवश्यकता है और इसके लिए प्राथमिकता के आधार पर पैसा पंचायतों को दिया जाना चाहिए। स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधि ही जमीनी हकीकत से वाकिफ होता है और वे ही श्रमिकों की स्थिति तथा उनकी जरूरतों को समझते हैं इसलिए ग्राम सभा को यह निर्धारित करना चाहिए कि काम किस प्रकार किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि संकट के इस वक्त केंद्र सरकार को पैसा सीधा लोगों के हाथों में पहुंचाना चाहिए तथा सब प्रकार की बकाया राशि, बेरोजगारी भत्ता तथा श्रमिकों का भुगतान लचीले तरीके से बगैर देरी के करना चाहिए। मनरेगा के महत्व को समझते हुए सरकार को मनरेगा के तहत कार्यदिवसों की संख्या बढ़ाकर 200 कर कार्यस्थल पर ही पंजीकरण कराने की व्यवस्था करनी चाहिए।
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