आरक्षण की चुनौतियों से निबटने को चाहिए इच्छाशक्ति: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली,23 अपै्रल (आरएनएस)। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि आरक्षण के परिदृश्य से उत्पन्न चुनौतियों से निबटने के लिए निर्वाचित सरकार के पास ‘राजनीतिक इच्छा शक्तिÓ का होना बहुत ही कठिन है, जहां न तो इस लाभ के हकदारों की सूची की समीक्षा की गई है और न ही आरक्षण का प्रावधान खत्म हुआ है।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सरकार को आरक्षण की पात्रता वाली सूचियों में संशोधन करने की आवश्यकता है ताकि आरक्षण का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंच सकें। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गत मंगलवार को सुनाए गए अपने फैसले में कहा कि अन्य पिछड़े वर्गो, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के साथ हुए भेदभाव के कारण सत्ता साझा करने के लिए आरक्षण प्रदान किया गया। संविधान पीठ ने कहा कि यह परिकल्पना की गई थी कि 10 साल के भीतर सामाजिक विसंगतियों, आर्थिक और पिछड़ेपन को समाप्त कर दिया जाना चाहिए, लेकिन समय समय पर संशोधन किए गए और सूचियों की न तो समीक्षा की गई और न ही आरक्षण के प्रावधान खत्म हुए।
पीठ ने फैसले में आगे कहा कि इसकी बजाए, इसे बढ़ाने और आरक्षण के भीतर भी आरक्षण देने की मांग हो रही है। किसी भी निर्वाचित सरकार के लिए इस परिदृश्य में पैदा हो रही चुनौतियों से निबटने के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति रखना बहुत ही कठिन है। न्यायालय ने आदिवासी इलाकों के स्कूलों में शिक्षकों के 100 फीसदी पद अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित करने के जनवरी 2000 के अविभाजित आंध्र प्रदेश का आदेश निरस्त करते हुए अपने फैसले में ये टिप्पणियां कीं। न्यायालय ने कहा कि यह मनमान है और संविधान के अंतर्गत इसकी इजाजत नहीं है। पीठ ने कहा कि 100 फीसदी आरक्षण प्रदान करना अनुचित होगा और कोई भी कानून यह अनुमति नहीं देता है कि अधिसूचित इलाकों में सिर्फ आदिवासी शिक्षक ही पढ़ाएंगे। पीठ ने कहा कि अनूसूचति जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान और आदिवासी इलाकों के संविधान की वजह यह है कि उनकी जीवन शैली की पद्धति एकदम भिन्न है क्योंकि वे सामान्य सभ्यता से अलग हैं और यह न्याय प्रदान करने, सांस्कृतिक और जीवन शैली जैसे कई पहलुओं में भिन्न हैं।
००

 

 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »