महिला वैज्ञानिकों के लिए बाह्य अनुसंधान निधि में वृद्धि एक स्वस्थ प्रवृत्ति थी:पद्मनाभम
नईदिल्ली,12 मार्च (आरएनएस)। इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मटेरियल्स (एआरसीआई), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का एक स्वायत्त अनुसंधान एवं विकास केंद्र है। यहां अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (आईडब्ल्यूडी) समारोह आयोजित किया गया, जिसमें महिला वैज्ञानिकों की बाह्य अनुसंधान निधि में समग्र वृद्धि की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला गया। यह निधि 2000-01 में 13 प्रतिशत थी। वर्ष 2014-15 में यह बढ़ कर 29 प्रतिशत हो गई।
एआरसीआई के निदेशक डॉ. जी. पद्मनाभम ने कहा कि महिला वैज्ञानिकों के लिए बाह्य अनुसंधान निधि में वृद्धि एक स्वस्थ प्रवृत्ति थी। इसके लिए अनेक प्रयास चल रहे थे। इस दिशा में श्रेष्ठ प्रक्रियाओं से ज्ञान प्राप्त करने के लिए लिए ब्रिटेन में शुरू किया गया एथेना स्वैन (वैज्ञानिक महिला शैक्षणिक नेटवर्क) ऐसे ही प्रयासों का एक हिस्सा है। उन्होंने महिला वैज्ञानिकों को उनके प्रयास और सफलता में समानता प्रदान करने के लिए एआरसीआई में हर संभव सहायता देने का आश्वासन दिया।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस कार्यक्रम एआरसीआई की आंतरिक शिकायत समिति द्वारा आयोजित किया गया था। एआरसीआई के निदेशक ने अपने संबोधन में लैंगिग विविधता के महत्व पर ध्यान केंद्रित किया। जो किसी भी संगठनात्मक वातावरण में नवाचार और समग्र उत्पादन बढ़ाने में योगदान देती है। उन्होंने कहा कि महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए समान अवसर और जिम्मेदारी देने का लक्ष्य है। इसके लिए विभिन्न स्तरों पर अनेक पहलें सरकार द्वारा और विश्व में संबंधित एजेंसियों द्वारा की जा रही हैं।
उन्होंने कहा कि समानता का यह लक्ष्य अधिक से अधिक महिलाओं को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में शामिल करके प्राप्त किया जा सकता है। पिछले कुछ दिनों में विभिन्न सेवाओं, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, व्यापार और ऐसे ही क्षेत्रों में महिलाओं का नेतृत्व बढ़ा है। उन्होंने डीएसटी की महिला वैज्ञानिक योजना, पोषण के माध्यम से नॉलेज इन्वोलमेंट इन रिसर्च एडवांसमेंट (किरन) जैसी पहलों का उल्लेख किया। किरन महिला वैज्ञानिकों से संबंधित विभिन्न मुद्दे जैसे बेरोजगारी, स्थानांतरण आदि का समाधान कर रही है।
तापडिय़ा डायग्नोस्टिक्स, हैदराबाद के अनुसंधान एवं विकास की निदेशक प्रो. गीता शर्मा एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक और बायोटेक्नोलॉजिस्ट है, उन्हें वायरोलॉजी, जीन क्लोनिंग और मोलिकुलर बायोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल है। वे इस समारोह में मुख्य अतिथि थीं। उन्होंने 29 साल तक उस्मानिया विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में प्रोफेसर के रूप में सेवा की है। इसके साथ-साथ हैदराबाद स्थित शांता बायोटेक की संस्थापक वैज्ञानिक भी रहीं। यह कंपनी जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक प्रसिद्ध कंपनी है। उन्होंने आनुवांशिक रूप से सृजित प्रोटीन पर आधारित 16 उत्पाद विकसित किए जिन्हें दवा या टीके के रूप में इस्तेमाल किया, जिसमें से छह उत्पादों का व्यवसायीकरण हुआ।
प्रो. गीता ने वूमेन टेक्नोप्रेनुरस एंड इनेबल्ड पॉलिसीज नामक विषय पर एक प्रेरणात्मक भाषण दिया। उन्होंने एक वैज्ञानिक और एक शिक्षक से एक उद्यमी बनने की अपनी कहानी सुनाई। उन्होंने एक वैज्ञानिक के रूप में एक तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में कैरियर बनाने के लिए आवश्यक गुणों पर भी जोर दिया। उन्होंने युवा शोधकर्ताओं को ट्रांस्लेशनल अनुसंधान करने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि ये अनुसंधान राष्ट्र के अर्थशास्त्र में योगदान देते हैं। वैज्ञानिक और प्रोफेसर से उद्यमी बनने की उनकी यात्रा ने एआरसीआई के शोधकर्ताओं और कर्मचारियों को बहुत प्रेरित किया।
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