भारत बचने की कोशिश करने के बजाए निर्णय लेता है: जयशंकर

नई दिल्ली,15 जनवरी (आरएनएस)। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ‘रायसीना डायलॉगÓ में कहा भारत बचने की कोशिश नहीं करता बल्कि निर्णय लेने में विश्वास रखता है। जयशंकर का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कई देशों ने हिंद-प्रशांत में भारत की बड़ी भूमिका का आह्वान किया है।
विदेश मंत्री जयशंकर ने बुधवार को ‘रायसीना डायलॉगÓ को संबोधित करते हुए कहा कि अमेरिका-ईरान के बीच चल रहे तनाव पर कहा कि वे दो विशिष्ट देश हैं और अब जो भी होगा वह इसमें शामिल पक्षों पर निर्भर करता है। चीन के साथ संबंधों पर विदेश मंत्री ने कहा कि पड़ोसी देशों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति बनाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के लिए संबंधों में संतुलन अहम है। हमें साथ-साथ चलना होगा। जयशंकर ने कहा कि भारत आतंकवाद से सख्ती से निपट रहा है। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत को अपनी पुरानी छवि से बाहर निकलना होगा। उन्होंने कहा कि एक समय था जब हम काम करने की तुलना में बोलते ज्यादा थे, लेकिन अब यह स्थिति बदल रही है। रायसीना डायलॉग के पांचवें संस्करण का आयोजन विदेश मंत्रालय और ‘ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशनÓ सम्मिलित रूप से कर रहे हैं। इसमें सौ से अधिक देशों के 700 अंतरराष्ट्रीय भागीदार हिस्सा ले रहे हैं। और इस तरह का यह सबसे बड़ा सम्मेलन है।
मंगलवार से शुरू हुए इस तीन दिवसीय सम्मेलन में 12 विदेश मंत्री हिस्सा ले रहे हैं। इनमें रूस, ईरान, ऑस्ट्रेलिया, मालदीव, दक्षिण अफ्रीका, एस्तोनिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, लातविया, उज्बेकिस्तान और ईयू के विदेश मंत्री शामिल हैं। ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ की भागीदारी का इसलिए महत्व है क्योंकि ईरान के कुद्स फोर्स के कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद वह इसमें हिस्सा ले रहे हैं।
सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का रूस ने फिर किया समर्थन
दुनिया की राजनीति पर हो रहे भारत के वैश्विक सम्मेलन रायसीना डायलॉग में बुधवार को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हिंद-प्रशांत अवधारणा पर निशाना साधते हुए कहा कि नई अवधारणा लाने की कोशिश मौजूदा संरचना में व्यवधान डालने और चीन को किनारे करने का प्रयास है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत और ब्राजील की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का भी समर्थन किया। लावरोव ने कहा कि समानता पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था को क्रूर बल का उपयोग कर प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए। लावरोव ने हिंद-प्रशांत अवधारणा पर कहा कि अमेरिका, जापान और अन्य देशों की ओर से की जा रही नई हिंद-प्रशांत अवधारणा लाने की कोशिश मौजूदा संरचना को नया आकार देने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि हमें एशिया प्रशांत को हिंद प्रशांत कहने की क्या जरूरत है? जवाब स्पष्ट है, ताकि चीन को बाहर किया जा सके। शब्दावली जोडऩे वाली होनी चाहिए, विभाजनकारी नहीं। ना तो एससीओ और ना ही ब्रिक्स किसी को अलग-थलग करता है। हिंद-प्रशांत पिछले कुछ वर्षों में भारत की विदेश नीति का प्रमुख केन्द्र रहा है और देश इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा दे रहा है। रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि किसी को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए, हम भारत की स्थिति का समर्थन करते हैं।
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