राष्ट्रवाद के मोर्चे पर शुरू हुई भाजपा की अग्नि परीक्षा

नई दिल्ली,23 दिसंबर (आरएनएस)। झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे ने राष्टï्रवाद के मोर्चे पर भाजपा की चुनौती बढ़ा दी है। सूबे का नतीजा ऐसे समय में आया है जब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी पर राजग के कई सहयोगी दलों ने अपनी ओर से सार्वजनिक रूप से चिंता जताई है। जाहिर तौर पर अब भाजपा के लिए राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, एनआरसी, समान नागरिक संहिता और धर्मातरण विरोधी कानून जैसे राष्टï्रवादी एजेंडे पर सहयोगियों को साधना इतना आसान नहीं होगा।
हालांकि लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्टï्र, हरियाणा और झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे ने पार्टी की चिंता बढ़ाई है। महाराष्टï्र और हरियाणा के चुनाव ऐसे समय में हुए थे जब मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का ऐतिहासिक फैसला लिया था। झारखंड के चुनाव ऐसे समय में हुए जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में निर्णय सुनाया तो सरकार ने विपक्ष के तीखे विरोध के बावजूद सीएए को अमली जामा पहनाया। हालांकि इसके बावजूद पार्टी को हरियाणा में जेजेपी के रूप में बैसाखी का सहारा लेना पड़ा, जबकि महाराष्टï्र और झारखंड में पार्टी सत्ता नहीं बचा पाई।
भावी राष्टï्रवादी एजेंडे का क्या?
लोकसभा चुनाव के बाद से ही मोदी सरकार और भाजपा राष्टï्रवादी मुद्दों को ले कर मुखर है। बीते दो सत्रों में पार्टी ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और सीएए के रूप में दो एजेंडे को अमली जामा पहनाया। अगले सत्र में पार्टी की रणनीति राष्टï्रीय जनसंख्या नीति तैयार करने और इसके बाद समान नागरिक संहिता और एनआरसी के मोर्चे पर आगे बढऩे की थी। संसद में समर्थन के बाद जिस प्रकार जदयू, लोजपा, शिअद, अगप जैसे सहयोगियों ने एनआरसी का विरोध शुरू किया है, उससे राष्टï्रवादी मोर्चे पर सरकार की आगे की राह आसान नहीं है। सवाल उठता है कि अब भाजपा इस मोर्चे पर किस रणनीति केतहत आगे बढ़ेगी।
सहयोगी पहले ही दिखा चुके हैं तेवर
महाराष्टï्र के नतीजे आने के बाद लोजपा ने एनडीए की वर्तमान कार्यप्रणाली पर तो अपना दल ने सामाजिक न्याय क ेएजेंडे पर खुल कर सरकार को घेरा था। जबकि सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर जदयू, लोजपा, शिअद और अगप पहले ही खुल कर चिंता जता चुके हैं। इन सहयोगियों को लगता है कि भाजपा के राष्टï्रवादी एजेंडे से उनका सियासी नुकसान होगा।
वोटिंग से नए ट्रेंड से भी चिंता
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी राज्योंं में भाजपा के वोट घटे थे, मगर मोदी के जादू की बदौलत पार्टी वर्ष 2018 तक 19 राज्योंं पर कब्जा करने में कामयाब हुई थी। वर्ष 2017 में पार्टी देश की 43 फीसदी आबादी पर राज कर रही थी। मगर अब मतदान के नए ट्रेंड ने भाजपा की चिंता बढ़ाई है। राज्योंं में मतदाताओंं क एक ऐसा बड़ा वर्ग तैयार हो रहा है जो लोकसभा चुनाव में तो खुल कर मोदी के नाम पर भाजपा को वोट देता है, मगर विधानसभा में यही वर्ग स्थानीय सरकार के कामकाज और सीएम की छवि को भी महत्व देता है। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव के बाद हुए तीन राज्यों के विधानसभ चुनाव में भाजपा के मत प्रतिशत में भारी गिरावट दर्ज की गई। लोकसभा चुनाव में बीते एक साल में पांच राज्यों में विपक्ष का करीब करीब सूपड़ा साफ करने वाली भाजपा विधानसभा चुनाव में औंधे मुंह गिरी।
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