आज बहुमत साबित करने के लिए सुनाया जाएगा फैसला
नई दिल्ली,25 नवंबर (आरएनएस)। महाराष्ट्र की सियासत पर सोमवार को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई। कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की तरफ से अदालत में पेश हुए वकीलों ने जहां आज ही अदालत से बहुमत परीक्षण कराने की मांग की। वहीं सत्तापक्ष के वकील ने कहा कि बहुमत परीक्षण तो होना ही है लेकिन उन्हें और समय दिया जाना चाहिए। इस दौरान अदालत में इस बात का खुलासा हुआ कि राज्यपाल ने फडणवीस सरकार को सदन में बहुमत परीक्षण के लिए 14 दिनों का समय दिया है। पहले कहा जा रहा था 30 नवंबर तक सरकार को बहुमत साबित करना है लेकिन नए खुलासे से पता चला है कि फडणवीस सरकार को 7 दिसंबर तक राज्यपाल ने बहुमत परीक्षण का समय दिया है। हालांकि सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब मंगलवार सुबह 10.30 बजे अदालत अपना फैसला सुनाएगा।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान केंद्र ने यह भी दावा किया कि महाराष्ट्र में सरकार गठित करने के लिए भाजपा को एनसीपी के 54 विधायकों का समर्थन था। केंद्र ने न्यायालय से अनुरोध किया कि राज्यपाल के फैसले के खिलाफ याचिका पर जवाब देने के लिये उसे दो तीन दिन का वक्त दिया जाए। न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष शिवसेना की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उनके गठबंधन के पास 154 विधायकों के हलफनामे हैं और भाजपा को 24 घंटे के भीतर अपना बहुमत सिद्ध करने के लिये कहा जाना चाहिए, अगर उसके पास है। केंद्र ने पीठ से कहा कि 23 नवंबर को सबसे बड़े दल को सरकार गठित करने के लिए आमंत्रित करना राज्यपाल का विवेकाधिकार था।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि महाराष्ट्र के राज्यपाल को सरकार गठित करने के लिये घूम-घूम कर यह पता लगाने की आवश्यकता नहीं है कि किस दल के पास बहुमत है। उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि क्या कोई दल यहां आकर 24 घंटे के भीतर बहुमत सिद्ध करने के लिए न्यायालय से हस्तक्षेप का अनुरोध कर सकता है। मेहता ने कहा कि राज्यपाल चुनाव के नतीजों के बाद के तथ्यों और स्थिति से भलीभांति अवगत थे जिनकी वजह से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने फड़णवीस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने संबंधी राज्यपाल कोश्यारी के पत्र का जिक्र किया और फिर कहा कि यह निर्णय करना होगा कि क्या मुख्यमंत्री के पास सदन में बहुमत का समर्थन है या नहीं। सॉलिसिटर जनरल ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल ने शिवसेना, भाजपा, एनसीपी को सरकार गठित करने के लिए आमंत्रित किया था और इनके कामयाब नहीं होने के बाद ही प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया गया।
एनसीपी के नेता और उप मुख्यमंत्री अजित पवार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिन्दर सिंह ने पीठ से कहा कि राज्यपाल ने नियमानुसार ही फडणवीस को सरकार गठित करने के लिये आमंत्रित किया है। इससे पहले, शिवसेना की ओर से बहस शुरू करते हुए सिब्बल ने तीनों दलों की प्रेस कांफ्रेस का हवाला दिया जिसमें उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री घोषित किया गया था। सिब्बल ने कहा कि ऐसी कौन सी राष्ट्रीय आपदा थी कि सुबह 5.27 मिनट पर राष्ट्रपति शासन खत्म किया जाता। उन्होंने राष्ट्रपति शासन हटाने की कथित जल्दबाजी और नई सरकार के गठन का जिक्र किया और कहा कि लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। सिब्बल ने कहा कि शिवसेन-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन ने महाराष्ट्र के 154 विधायकों के समर्थन के हलफनामे दिए हैं। यदि भाजपा के पास संख्या है तो उसे 24 घंटे के भीतर बहुमत सिद्ध करने के लिये कहा जाना चाहिए।
एनसीपी और कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे निचले स्तर का छल करार दिया और सवाल किया कि क्या एक भी एनसीपी विधायक ने अजित पवार से कहा कि उसने भाजपा के साथ हाथ मिलाने के लिये उनका समर्थन किया। विशेष पीठ के समक्ष सोमवार को सुनवाई शुरू होने पर मेहता ने न्यायालय के निर्देशानुसार राज्यपाल और फड़णवीस के पत्र पेश किया। पीठ ने रविवार को ये पत्र पेश करने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन की इस याचिका पर विचार नहीं कर रही है कि उन्हें महाराष्ट्र में सरकार गठित करने के लिए आमंत्रित किया जाए।
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