गरीबों की स्थिति में सुधार के लिए तकनीक का प्रयोग जरुरी:सारंगी
नईदिल्ली,26 सितंबर (आरएनएस)। केन्द्रीय सुक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम तथा पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन राज्यमंत्री प्रताप चंद्र सारंगी ने कहा कि सर्वाधिक गरीबों की स्थिति में सुधार के लिए तकनीक का प्रयोग किया जाना चाहिए। सारंगी ने गुरुवार को नई दिल्ली में ‘एमएसएमई के लिए उभरती तकनीकों तक पहुंचÓ विषय पर आयोजित कार्यशाला का उद्घाटन किया।
उन्होंने कहा कि वस्तुओं के उत्पादन, संरक्षण और विपणन के लिए प्रौद्योगिकी की जरूरत है और विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए नई तकनीकों की आवश्यकता है। एमएसएमई के विकास के जरिये प्रधानमंत्री के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के सपने को पूरा किया जा सकता है। इसके लिए नई तकनीकों को अपनाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि हमें तकनीकों के अनुप्रयोग में सावधान रहने की आवश्यकता है, क्योंकि कभी-कभी यह प्रकृति के खिलाफ कार्य करती है।
इस कार्यशाला का उद्देश्य उभरती हुई तकनीकों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और तकनीकों के अनुप्रयोग, क्षमता व प्रभाव के बारे में जानकारी प्रदान करना है। कार्यशाला में नई तकनीकों को अपनाने की चुनौतियों के साथ-साथ विश्व के कुछ नए मॉडलों के बारे में चर्चा की गई। एमएसएमई क्षेत्र में नई तकनीकों को अपनाने के लिए संस्थान आधारित सहयोग पर भी विचार-विमर्श किया गया। इस कार्यक्रम के लिए मंत्रालय ने आईआईटी दिल्ली, आईआईएससी बेंगलूरू, उद्योग परिसंघ आदि के गणमान्य व्यक्तियों को निमंत्रित किया है।
सुक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम मंत्रालय के सचिव अरुण पांडा ने कहा कि एमएसएमई की पहुंच नवीनतम तकनीकों तक होनी चाहिए। उन्होंने व्यापार परिसंघों से अपील करते हुए कहा कि उन्हें एमएसएमई को तकनीक उन्नयन तथा ऋण सुविधा के लिए कार्य करना चाहिए। मंत्रालय 18 टूल रूम संचालित कर रहा है और अन्य 15 टूल रूम निर्माण की प्रक्रिया में हैं। इसके अलावा 120 नए टूल रूम/प्रौद्योगिकी केन्द्रों को मंजूरी दी जा चुकी है। जब सभी 153 केन्द्रों का संचालन शुरू हो जाएगा तो इनसे 8 लाख युवाओं को प्रशिक्षण प्राप्त होगा।
एमएसएमई के विकास आयुक्त राम मोहन मिश्रा ने कहा कि हमारे देश में स्तरीय अनुसंधान संस्थान प्रौद्योगिकी संस्थान और विज्ञान प्रयोगशालाएं मौजूद हैं। इन संस्थानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए लघु उद्यमों को नई तकनीकें उपलब्ध करानी चाहिए।
एमएसएमई को पूरी दुनिया में जीडीपी में बड़ा योगदान देने वाला क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र में 6 करोड़ इकाईयां हैं, जो 8,000 से अधिक उत्पाद बनाते हैं। इस क्षेत्र में 11.1 करोड़ लोग कार्यरत हैं।
एक दिवसीय कार्यशाला में आईआईटी दिल्ली के सुनील झा व अन्य विशेषज्ञों ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोट, सेंसर, रियल टाइम डैसबोर्ड आदि उभरती हुई तकनीकों पर प्रस्तुतियां दीं।
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