सियासी दलों के सामने वोट प्रतिशत को सीटों में बदलने की चुनौती
नई दिल्ली ,18 मार्च (आरएनएस)। लोकसभा चुनाव में ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली जैसे राज्य अलग अलग कारणों से कांग्रेस, द्रमुक, भाजपा, माकपा, बसपा, आप जैसे राजनीतिक दलों के लिये काफी महत्वपूर्ण होने वाले हैं जहां पिछले चुनाव में इन्हें वोट तो बहुत मिले लेकिन उस अनुपात में सीटें नहीं मिल सकीं।
2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि ओडिशा में कांग्रेस को 26 प्रतिशत वोट मिले लेकिन राज्य में वह एक सीट भी नहीं जीत सकी। राज्य में भाजपा का वोट प्रतिशत 21.5 था और वह केवल एक सीट ही जीत सकी। तमिलनाडु में द्रमुक को 23.6 प्रतिशत वोट मिले लेकिन उसे राज्य में एक सीट पर भी जीत हासिल नहीं हुई। राज्य में भाजपा और पीएमके को क्रमशरू 5.5 प्रतिशत और 4.4 प्रतिशत वोट और एक..एक सीट पर जीत मिली। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में माकपा को 22.7 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए और वह दो सीट जीतने में सफल रही। वहीं उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का वोट प्रतिशत 19.6 था लेकिन वह राज्य में एक सीट भी नहीं जीत सकी। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने 7.5 प्रतिशत वोट प्राप्त करके दो सीटों पर जीत हासिल की। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को दिल्ली में 32.9 प्रतिशत वोट मिले लेकिन वह राज्य की सात में से एक सीट भी नहीं जीत पाई थी। पिछले चुनाव में ओडिशा में बीजू जनता दल के वोटों की राष्ट्रीय स्तर पर हिस्सेदारी 1.71 प्रतिशत थी जबकि उसकी राष्ट्रीय स्तर पर सीटों का प्रतिशत 3.68 प्रतिशत था। राज्य में बीजद को 21 में से 20 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जहां प्रदेश स्तर पर उसकी वोट हिस्सेदारी 44.1 प्रतिशत थी। अन्नाद्रमुक की राष्ट्रीय स्तर पर वोट हिस्सेदारी 3.27 प्रतिशत थी और उसे 6.81 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए। अन्नाद्रमुक को प्रदेश स्तर पर 44.3 प्रतिशत वोट मिले थे और उसने 39 में से 37 सीटों पर जीत हासिल की थी। पिछले लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर पर वोट हिस्सेदारी 3.84 प्रतिशत थी और उसे 6.26 प्रतिशत सीटें मिली थी। तृणमूल को राज्य स्तर पर 39.3 प्रतिशत वोट मिले लेकिन उसने 80.95 प्रतिशत सीटें जीतीं।
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