नरसंहार मामलों से निपटने अलग कानून की जरूरत
नई दिल्ली,18 दिसंबर (आरएनएस)। 1984 सिख विरोधी दंगे के मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए हाई कोर्ट ने ऐसे मामलों के लिए देश के आपराधिक कानून में बदलाव की जरूरत बताई है। सोमवार को हाई कोर्ट ने कहा कि मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार जैसे इन मामलों से निपटने के लिए अलग से कानून की जरूरत है। कानून में लूपहोल के चलते ऐसे नरसंहार के अपराधी केस चलने और सजा मिलने से बच निकलते हैं।
जस्टिस एस. मुरलीधर और विनोद गोयल की बेंच ने कांग्रेस लीडर सज्जन कुमार को दोषी करार देते हुए कहा कि ऐसे मामलों के लिए अलग से कोई कानूनी एजेंसी न होने का ही अपराधियों को फायदा मिला और वे दशकों तक बचे रहे। कुमार को हत्या और साजिश रचने का दोषी करार देते हुए बेंच ने कहा, ऐसे मामलों को मास क्राइम के बड़े परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए। इसके लिए अलग ही अप्रोच की जरूरत है।
बेंच ने कहा कि सिख दंगों में दिल्ली में 2,733 लोगों और पूरे देश में 3,350 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। मास क्राइम का न तो यह मामला था और न ही यह आखिरी था। कोर्ट ने अपनी बात के पक्ष में मुंबई में 1993 के दंगों, 2002 के गुजरात दंगों, ओडिशा के कंधमाल में 2008 को हुई हिंसा और मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए दंगे का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि ये कुछ उदाहरण हैं, जहां अल्पसंख्यकों को टारगेट किया गया। यही नहीं ऐसे मामलों को अंजाम देने में सक्रिय रहे राजनीतिक तत्वों को कानून लागू कराने वाली एजेंसियों की ओर से संरक्षण देने का काम किया गया।