यौन हिंसा मामलों की रिपोर्टिंग संबंधी दिशानिर्देशों पर गहराई से विचार की जरूरत
नयी दिल्ली,30 नवंबर (आरएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि यौन हिंसा, विशेषकर अवयस्कों के साथ अपराध, के मामलों की मीडिया रिपोर्टिंग के लिये दिशा निर्देशों से संबंधित विषय पर गहराई से विचार की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ को बताया गया कि यौन हिंसा की पीडि़त की पहचान का खुलासा करने वाले मीडिया घरानों और पत्रकारों के खिलाफ की गयी कार्रवाई के संबंध में भारतीय प्रेस परिषद सहित विभिन्न मीडिया संगठनों द्वारा दायर हलफनामों में ”ज्यादा कुछ नहीं है।ÓÓ मुजफ्फरपुर आश्रय गृह कांड में याचिका दायर करने वाली याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफडे ने कहा, ”वे (मीडिया संगठन) लगभग यही कह रहे हैं कि वे कुछ नहीं कर सकते। इसमें (हलफनामों में) ज्यादा कुछ नहीं है।ÓÓ इस पर पीठ ने टिप्पणी की, ”हां, इनमें वे लगभग यही कह रहे हैं।ÓÓ पीठ ने कहा, ”दिशा निर्देश बनाने संबंधी मुद्दे पर विस्तार से विचार करना होगा।ÓÓ न्यायालय ने इसके लिये याचिका फरवरी के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध कर दी। इससे अलग, एक अन्य मामले में न्यायालय ने शुक्रवार को भारतीय दंड संहिता, यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण कानून और न्यायालय की अवमानना कानून के प्रावधानों की व्याख्या से संबंधित मुद्दे पर सुनवाई पूरी कर ली। ये कानून यौन हिंसा की पीडि़ता की पहचान सार्वजनिक करने और ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग के लिये मीडिया द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से संबंधित है। न्यायलय ने इससे पहले भारतीय प्रेस परिषद, एडीटर्स गिल्ड और इंडियन ब्राडकास्टिंग फेडरेशन को हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया था जिसमें उन्हें यह बताना था कि क्या वे मीडिया द्वारा यौन हिंसा पीडि़त की पहचान सार्वजनिक करने से संबंधित अपराध के बारे में पुलिस को सूचना दे सकते हैं। न्यायालय ने इन संगठनों से यह भी पूछा था कि इसका उल्लंघन करने वाले कथित आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिये उन्होंने कोई कदम क्यों नहीं उठाये। पीठ का मानना था कि यौन हिंसा की पीडि़त की पहचान का खुलासा करते हुये यदि कानून का उल्लंघन हुआ है तो ऐसे मामले में कार्रवाई की जानी चाहिए।
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