डॉ. अम्बेडकर की थिसिस “दि प्रॉब्लम ऑफ रुपीस’ के सौ वर्ष पूरे होने पर बौद्धिक परिचर्चा का हुआ सफल आयोजन

डॉ. अम्बेडकर वेलफेयर सोसाइटी द्वारा आयोजित परिचर्चा में विशेषज्ञों और प्रबुद्धजनों ने रखे महत्वपूर्ण विचार

 रिजर्व बैंक और देश भर के  अन्य सभी बैंकों में बाबा साहब डॉ अंबेडकर के लिखित कोटेशन व छाया चित्र लगाने की मांग हो ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए – परिचर्चा में उठी आवाज़
युवा पीढ़ी को वित्त के बारे में जागरूक और शिक्षित करने की जरूरत – आई.जी. श्री रतनलाल डांगी  

रायपुर, 09 अक्टूबर  (आरएनएस)। बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की थिसिस “दि प्रॉब्लम ऑफ रुपीस” के 100 वर्ष पूरे होने के मौके पर डॉ. अम्बेडकर वेलफेयर सोसायटी, छत्तीसगढ़ द्वारा बौद्धिक परिचर्चा का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। राजधानी रायपुर के एक स्थानीय होटल में आज आयोजित परिचर्चा में विशेषज्ञों और प्रबुद्धजनों ने डॉ. अंबेडकर के योगदान और उनकी थिसिस “दि प्रॉब्लम ऑफ रुपीस” के बारे में अपने महत्वपूर्ण विचार रखे। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में शामिल रायपुर पुलिस रेंज के महानिरीक्षक श्री रतनलाल डांगी द्वारा लिखित ‘डॉ. भीमराव अंबेडकर’ पुस्तक का विमोचन किया गया। परिचर्चा में आमंत्रित अतिथियों और श्रोताओं ने भारतीय संविधान के पालन की शपथ ली। डॉ. अम्बेडकर वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष एवं राज्य शासन में विभागीय जांच आयुक्त श्री दिलीप वासनीकर, आवास एवं पर्यावरण विभाग के विशेष सचिव श्री महादेव कावरे, पुलिस महानिरीक्षक श्री रतनलाल डांगी, नई दिल्ली से आए वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं बजट विशेषज्ञ श्री उमेश बाबू तथा पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के प्राध्यापक प्रो. एस.के. जाधव ने परिचर्चा के दौरान थिसिस “दि प्रॉब्लम ऑफ रुपीस”, डॉ. अंबेडकर के चिंतन और वंचित वर्गों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर अपने विचार साझा किए।

मुख्य वक्ता के रूप में परिचर्चा को संबोधित करते हुए रायपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक श्री रतनलाल डांगी ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को वित्त यानि फाइनेंस के बारे में जागरूक और शिक्षित करने की बेहद जरूरत है। इसका अधिकतम सदुपयोग किस तरह से किया जा सकता है, इसके बारे में उन्हें रास्ता दिखाने की जरूरत है। श्री डांगी ने कहा कि ईमानदारी से कैसे रुपए कमाएं और इसे कैसे इकट्ठा करें, यह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन से जुड़ा है। दिखावे की प्रवृत्ति से बचते हुए हमें अनावश्यक खर्चों में कटौती, मितव्ययता और सही जगह में धन के निवेश के बारे में भी सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा के बदले भौतिकतावाद की ओर बढ़ना समाज के लिए नुकसानदायक है। श्री डांगी ने बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की थिसिस “दि प्रॉब्लम ऑफ रुपीस” के बारे में कहा कि इस थिसिस में उनका देशप्रेम और यहां के लोगों के बारे में चिंता झलकती है। इस थिसिस के लिखे जाने के 100 साल बाद आज हम यहां इसकी चर्चा कर रहे हैं। डॉ. अंबेडकर के चिंतन और योगदान पर सतत चर्चा जरूरी है। उन पर आज से 100 वर्ष वाद भी चर्चा हो, यह हम सबकी जिम्मेदारी है।

नई दिल्ली के वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं बजट विशेषज्ञ श्री उमेश बाबू ने परिचर्चा में वर्तमान परिस्थितियों में “दि प्रॉब्लम ऑफ रुपीस” के विभिन्न पहलुओं को तथ्यात्मक ढंग से रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि वस्तुओं के न्यूनतम मूल्य के साथ उनका अधिकतम मूल्य भी तय होना चाहिए। बाबासाहेब ने अपनी थिसिस में जो सिद्धांत लिखे हैं, वे विभिन्न रूपों में आज 100 साल बाद भी प्रासंगिक हैं। श्री बाबू ने कहा कि समाज में मेरिट (Merit) पर बात होना ही चाहिए। हमारी राजनीतिक समझ समाज का ही प्रतिबिंब है। जब समाज में मेरिट नहीं होगी, तो राजनीति में मेरिट कैसे आएगी? रुपए के एक्सचेंज स्टैंडर्ड में मेरिट कैसे आएगी? दलितों और आदिवासियों को अपने हिस्से का बजट हासिल करने के लिए रुपए के मूल्य, इसकी समस्या और समाधान पर चर्चा करनी ही चाहिए।

रायपुर के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो. एस.के. जाधव ने परिचर्चा में थिसिस “दि प्रॉब्लम ऑफ रुपीस” के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने ऐसे विषयों पर लिखा है जिन पर किसी और ने नहीं लिखा है। उन्होंने अपनी पुस्तकों में अकाट्य तर्कों और तथ्यों के साथ लिखा है। उन्होंने बताया कि बाबासाहेब की थिसिस “दि प्रॉब्लम ऑफ रुपीस” 1947 में “भारतीय मुद्रा और बैंकिंग का इतिहास” के नाम से दोबारा प्रकाशित हुई थी। डॉ. अंबेडकर ने भारतीय अर्थव्यवस्था की जटिलता को भी इसमें बताया है। भारतीय वित्तीय प्रणाली एवं मुद्रा सुधार की बात भी इसमें हैं, जिसने भारतीय रिजर्व बैंक के गठन का आधार तैयार किया। प्रो. जाधव ने कहा कि सामाजिक सुधार तभी आ सकता है जब आर्थिक समानता हो।

आवास एवं पर्यावरण विभाग के विशेष सचिव श्री महादेव कावरे ने परिचर्चा को संबोधित करते हुए कहा कि बाबासाहेब ने 100 वर्ष पूर्व जो थिसिस लिखी थी, वह आज भी प्रासंगिक है।  इसी थिसिस के फलस्वरूप ही देश में रिजर्व बैंक के गठन का रास्ता निकला और बैंकों का निर्माण हुआ। इसलिये रिजर्व बैंक और देश भर के  अन्य सभी बैंकों में बाबा साहब डॉ अंबेडकर के लिखित कोटेशन व छाया चित्र लगाने की मांग हो ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए। इसके मुताबिक हमें आज भी काम करने की जरूरत है। डॉ. अंबेडकर ने जो सुझाव दिए थे, तत्कालीन समय में उन पर काम कर हम अपनी अर्थव्यवस्था को और मजबूत कर सकते थे। डॉलर की तुलना में हमारा रुपया लगातार क्यों कमजोर होता जा रहा है, यह विचारणीय है। डॉ. अम्बेडकर वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष एवं राज्य शासन में विभागीय जांच आयुक्त श्री दिलीप वासनीकर ने अपने संबोधन में बताया कि डॉ. अबेडकर ने अपनी पीएचडी थिसिस के रूप में “दि प्रॉब्लम ऑफ रुपीस” 22 अक्टूबर 1922 को लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में जमा की थी। उन्होंने कहा कि बाबासाहेब केवल भारतीय संविधान के शिल्पी ही नहीं थे, बल्कि अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, दार्शनिक, मनोविज्ञानी और राजनीतिज्ञ के साथ-साथ इतिहास और संस्कृति के गहरे जानकार भी थे। श्री वासनीकर ने कहा कि हमारे सामने लगातार सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां रहेंगी, हमें मिल-जुलकर इनका सामना करना होगा। डॉ. अम्बेडकर वेलफेयर सोसाइटी आने वाले समय में इस तरह के और भी आयोजनों से बाबासाहेब के विचारों को आगे बढ़ाने का काम करेगी। उन्होंने परिचर्चा में भाग लेने वाले वक्ताओं और सभी श्रोताओं के प्रति आभार व्यक्त किया। परिचर्चा में अतिथियों और श्रोताओं को “दि प्रॉब्लम ऑफ रुपीस” का हिन्दी रूपांतर “रुपए की समस्या” पुस्तक भी भेंट की गई।

परिचर्चा को प्रबुद्धजन श्री विनोद कोसले और श्री जगजीवन बौद्ध ने भी संबोधित किया। परिचर्चा की शुरूआत में डॉ. अम्बेडकर वेलफेयर सोसाइटी के उपाध्यक्ष और छत्तीसगढ़ अपेक्स बैंक के प्रबंध संचालक श्री कमल नारायण कांडे ने सोसाइटी के गठन की पृष्ठभूमि, उद्देश्यों और गतिविधियों की जानकारी दी। डॉ. अम्बेडकर वेलफेयर सोसाइटी के उपाध्यक्ष एवं स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया के एस.सी.-एस.टी. सेल ते चेयरमैन श्री सुनील रामटेके, जल संसाधन विभाग के सेवानिवृत्त प्रमुख अभियंता श्री हेमराज कुटारे और डॉ. अम्बेडकर वेलफेयर सोसाइटी के महासचिव श्री कमलेश बंसोड़ सहित सोसाइटी के सभी पदाधिकारी और अनेक बुद्धिजीवी भी परिचर्चा में मौजूद थे। श्रीमती मंजूकिरण कमलेश बंसोड़ ने परिचर्चा का संचालन किया।

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