बेबस बुंदेलखंड में चुनावी बिसात तैयार
सौरभ तिवारी,
बांदा , 23 SEPTEMBER, (RNS)… विश्व मानचित्र में बुंदेलखंड की एक अहम पहचान है। भारत के नक्शे पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमाओं पर बंटा यह क्षेत्र अपने आप में परिपूर्ण है। लेकिन आज भी यहां का किसान आंसू बहा रहा है। मिडिल क्लास हर दिन दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है। जबकि बुंदेलखंड में वह सब है, जो एक समृद्ध प्रदेश व देश के लिए चाहिए। यहां की अकूत खनिज संपदा प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर को आसमान की ऊंचाई तक ले जाने के लिए काफी है। पर्यटन क्षेत्र पलायन व बेरोजगारी की समस्या को समाप्त करने के लिए परिपूर्ण है। इन सब के बावजूद विश्वपटल पर बुंदेलखंड की पहचान आत्महत्या, भुखमरी और खनिज संपदा की लूट पर की जाती रही है। सरकारें आई और गईं, सभी ने यहां के सीधे-साधे लोगों को उनके मनमुताबिक जरूरतों का पिटारा खोल लुभावना झुनझुना हाथों में थमाते रहे। एक बार फिर विभिन्न पार्टियों की नजरें बुंदेलखंड की ओर हैं। चुनाव से पूर्व सभी राजनैतिक व अराजनैतिक संगठन अपने फायदे के लिए चुनावी बिसात बिछाना शुरू कर दिया है। चुनाव से पहले हम आपको यहां की सभी गतिविधियों और पूर्व की सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों पर नजर दौड़ाते हैं।
इनसेट.
किसान और उसकी खेती
बुंदेलखंड की राजनीति में हमेशा से किसान केंद्रबिंदु रहा है। यहां की पहचान ही किसान है। लेकिन तस्वीर में समृद्ध नहीं, बल्कि बेबस किसान का चेहरा लोगों के सामने है। ऐसा नहीं कि एक दो दशक पुराने हालात आज भी हों, किसानों की कुछ हद तक समस्याएं दूर हुई हैं। लोग यहां की जलवायु के मुताबिक खेती की ओर रूचि ले रहे हैं। बसपा सरकार में बांदा शहर में कृषि विद्यालय जैसे संस्थान लगाए गए हैं। जैविक और अधिक आय देने वाली खेती की ओर किसानों को रास्ता बतलाया गया है। तमाम सरकारी परियोजनाओं में अधिग्रहित भूमि के सापेक्ष कई गुना मुआवजा पाने पर समृद्ध किसानों की गिनती में इजाफा हुआ है। लेकिन अभी भी दबे कुचले व असिंचित क्षेत्र के बहुतायत किसानों की आंखे सरकार की ओर देख रही हैं।
पर्यटन
बुंदेलखंड को पर्यटन हब कहना अतिसयोक्ति न होगा। कुछ समय पहले पर्यटन को उद्योग का दर्जा प्राप्त हो गया था | यहां पर्यटन स्थलों की भरमार है | एक-दो नहीं बल्कि लगभग 147 पुरातत्व स्मारक हैं। पुरातत्व विभाग बुंदेलखंड में सिर्फ झांसी और कालिंजर बांदा को ही पर्यटन केंद्र मानता है। कुछ इमारतें और हैं जिनको हाल ही में पर्यटन केंद्र का दर्जा मिला है। कुछ दिनों पूर्व आरटीआई में मांगी गई सूचना में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने बताया था कि बुंदेलखंड में सिर्फ झांसी में ही विदेशी पर्यटक आते हैं। महोबा के मलकपुरा में कीरत सागर, चित्रकूट में गणेश बाग मंदिर, झांसी में किला और रानी महल, ललितपुर मेें लक्ष्मी नारायण मंदिर इत्यादि ऐसे स्मारक हैं जहां पुरातत्व विभाग ने कर्मचारी रखे हुए है। इन ऐतिहासिक स्थलोें को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने की अपार संभावनाएं हैं। सरकारी चश्में से देखें तो इस क्षेत्र में बुंदेलखंड के लिए सिर्फ कागजों पर कलमें चलती रही हैं। उसे आज तक अमलीजामा नहीं पहनाया गया।
बेरोजगारी और पलायन
बुंदेलखंड की बेबसी का बड़ा पहलू बेरोजगारी और उससे जन्मा पलायन है। बांदा और महोबा जैसे जिले के कई गांव के सैकड़ों घरों पर सालों से ताले लटके हुए हैं। दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में बेरोजगार युवा व किसान सपरिवार महानगरों में मजदूरी करने को विवश है। कोरोना के बाद से स्थिति और भयावह हो गई है। पूर्व की सरकारों ने इस क्षेत्र से पलायन रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। लेकिन राज्य की भाजपा सरकार ने निश्चित ही बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे और डिफेंस कॉरीडोर देकर यहां के कई जिलों से पलायन रोकने के लिए कदम जरूर उठाया है। जो कि जिस पर अभी भी कार्य चल रहा है।
जल
बुंदेलखंड में पानी की बात करें तो यहां प्राकृतिक जल स्रोतों का एक बड़ा व सशक्त जाल है। बावजूद इसके यहां पेयजल के लिए त्राहि-त्राहि मचती रहती है। शहरों में टैंकरों से पानी पहुंचाया जाता है। गांवों में सुदूर इलाके से महिलाएं और बच्चे पेयजल की व्यवस्था करते हैं। एक वेबसाइड के मुताबिक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के दो भागों में फैले बुंदेलखंड में छोटी-बड़ी करीब 35 नदियां हैं। यमुना, बेतवा, केन, बागै समेत लगभग 7 नदियां राष्ट्रीय स्तर की हैं।बुंदेलखंड में साढ़े 17 हजार से अधिक प्राचीन तालाब हैं। सरकारी व निजी प्रयासों से काफी संख्या में नए तालाब भी खोदे जा चुके हैं। पेयजल के लिए कुएं हैं। इनकी संख्या 35 हजार से ज्यादा है। दस विशेष प्राकृतिक जल स्रोत हैं, जिन्हें हम कालिंजर दुर्ग, श्री हनुमान धारा पर्वत, गुप्त गोदावरी व बांदा के तुर्रा गांव के पास नेशनल हाईवे पर विसाहिल नदी में देखते हैं। लेकिन नदियों में खनिज संपदा के अवैध और नियम विरुद्ध दोहन से जल श्रोत नष्ट हो रहे हैं। यही वजह है कि गर्मियों में पानी की किल्लत बढ़ जाती है। केंद्र की भाजपा सरकार ने हर घर नल योजना की शुरूआत की है। जिस पर काम शुरू हो चुका है।
अन्ना मवेशी
बुंदेलखंड में अन्ना मवेशी बड़ी समस्या हैं। बुंदेलखंड इलाके में भटकते पशुधन के कारण हर साल औसतन 25 से 35 फीसदी फसल नष्ट होती है । इस भीषण समस्या को दूर करने के लिए सभी सरकारों ने अरबों रूपए खर्च किए हैं। बावजूद समस्या जस की तस बनी हुई है। एक आंकड़ों के मुताबिक चित्रकूट में लगभग 110000, , बांदा में लगभग 82000, , हमीरपुर में 70000 और महोबा में लगभग 85000 अन्ना मवेशी मौजूद हैं। जिनकी संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है। कई किसान थक हारकर खुद खेतों में बाड़े (बैरियर) बनाकर अन्ना मवेशियों से फसलों को बचाते हैं।