यूपी चुनाव में तीनों एजेंडे हल करने के बाद उतरेगी भाजपा

0-जो कहा वो किया का होगा चुनावी नारा
0-विधानसभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता लागू करने की तैयारी
0-राम मंदिर निर्माण-अनुच्छेद 370 निरस्त करने का वादा पहले ही कर चुकी है पूरा
0-लोकसभा चुनाव तक मिलेगा राम मंदिर का साथ
नई दिल्ली,19 जुलाई (आरएनएस)। साल 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ उतरेगी। पार्टी की योजना चुनाव से पूर्व अपने तीनों अहम एजेंडे को अमली जामा पहना देने की है। राम मंदिर निर्माण और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का एजेंडा पूरा कर चुकी भाजपा की योजना इस चुनाव से पूर्व समान नागरिक संहिता लागू करने के अपने तीसरे अहम एजेंडे को अमली जामा पहनाने की है। इसके बाद पार्टी चुनाव मैदान में जो कहा वो किया के नारे के साथ मैदान में उतरेगी।
गौरतलब है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का सिलसिला पांच अगस्त से भूमि पूजन के साथ शुरू होगा। भूमि पूजन ऐसे समय में हो रहा है जब बिहार में नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। मंदिर निर्माण में तीन से चार साल का वक्त लगेगा। ऐसे में पार्टी को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ही नहीं बल्कि साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक इस मुद्दे का साथ मिलेगा। बहुत संभावना है कि मंदिर निर्माण का काम लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले ही हो जाए।
समान नागरिक संहिता के लिए अभियान
संघ सूत्रों के मुताबिक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद केलिए आने वाला साल 2021 बेहद महत्वपूर्ण होगा। इसी साल तीन तलाक विरोधी अभियान की तर्ज पर समान नागरिक संहिता बहाल करने की मुहिम छिड़ेगी। संघ के एजेंडे में इसी साल के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून और गोहत्या पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध का भी एजेंडा शामिल है। संघ सूत्रों का कहना है कि पहले दो एजेंडे राम मंदिर निर्माण और अनुच्छेद 370 को अमली जामा पहनाने की राह आसान नहीं थी। जबकि समान नागरिक संहिता की राह अपेक्षाकृत आसान है। सुप्रीम कोर्ट और कुछ राज्य के हाईकोर्ट इसके समर्थन में कई बार पहले भी टिप्पणी कर चुके हैं।
काशी-मथुरा पर रुख साफ नहीं
फिलहाल संघ का काशी-मथुरा को ले कर रुख साफ नहीं है। विश्व हिंदू परिषद चाहता है कि अब इस मामले में आगे बढ़ा जाना चाहिए। हालांकि इस पर फिलहाल आम सहमति नहीं है। संघ सूत्रों का कहना है कि फिलहाल दोनों ही मामलों में एक संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है। इस अर्जी में वर्ष 1991 के कानून के तहत इन पूजा गृहों को मिले संरक्षण को चुनौती दी गई है। फिलहाल निगाहें सुप्रीम कोर्ट के रुख पर है।
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