भारत को मिली जलवायु परिवर्तन आकलन रिपोर्ट

नई दिल्ली,15 जून (आरएनएस)। भारत में औसत तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस बढऩे का अनुमान है। गर्म हवाओं की आवृत्ति तीन-चार गुना ज्यादा हो सकती है। हाल के 2-3 दशकों की तुलना में इस सदी के अंत तक उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में 30 सेमी की वृद्धि और समुद्र के स्तर में भी वृद्धि हो सकती है। ऐसा सरकारी वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा पहली बार जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट में दिखाया गया है।
भारतीय क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का आकलन रिपोर्ट में दिखाया गया है कि साल के सबसे गर्म दिन और सबसे ठंडी रात के तापमान में हाल के 30 वर्षों (1986-2015) की अवधि में लगभग 0.63 डिग्री सेल्सियस और 0.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। माना जा रहा है कि ये तापमान बिजनेस एज यूजुअल (बीएयू) स्थितियों में सदी के अंत तक क्रमश: 4.7 और 5.5 डिग्री सेल्सियस तक बढऩे का अनुमान है। बीएयू की स्थिति एक ऐसे परिदृश्य का उल्लेख करती है, जहां ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती है या बहुत कम किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन होता है। इस रिपोर्ट को पृथ्वी विज्ञान मंत्री हर्षवर्धन मंगलवार को जारी करेंगे। इसमें राज्य या शहर-विशिष्ट अनुमानों को नहीं रखा गया है। इसका विश्लेषण विभिन्न अध्ययनों को संदर्भित करता है जो बताते हैं कि हाल के दिनों में मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण, समुद्र के स्तर में वृद्धि और अन्य क्षेत्रीय कारकों के कारण बाढ़ का सामना करना पड़ा है। रिपोर्ट में भारत-गंगा मैदान, पश्चिमी घाट, उत्तर हिंद महासागर के साथ तटीय क्षेत्र और पूर्व और पश्चिम हिमालय के क्षेत्रीय अनुमान लगाए गए हैं। इसके अलावा मौसम की घटनाओं और स्थिति के कारण पैदा करने वाले कारकों का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य भारत के आर्द्र क्षेत्र, विशेष रूप से, सूखाग्रस्त क्षेत्र बन गए हैं क्योंकि देश ने पिछले कुछ दशकों के दौरान सूखे और बाढ़ में वृद्धि देखी गई है। पिछले आकलन का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि बाढ़ का जोखिम पूर्वी तट, पश्चिम बंगाल, पूर्वी यूपी, गुजरात और कोंकण क्षेत्र, साथ ही साथ मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे अधिकांश शहरी क्षेत्रों में बढ़ गया है।
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