मुकदमे से पहले अनिवार्य मध्यस्थता वाले कानून के लिए उचित समय:सीजेआई

नई दिल्ली, 08 फरवरी (आरएनएस)। प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने शनिवार को कहा कि एक ऐसा व्यापक कानून बनाने के लिए यह सबसे सही समय है, जिसमें श्मुकदमे से पहले अनिवार्य मध्यस्थता शामिल हो। उन्होंने कहा कि इस कानून से कार्यक्षमता सुनिश्चित होगी और पक्षकारों व अदालतों के लिए मामलों के लंबित होने का समय घटेगा। उन्होंने यह भी कहा कि जजों के लिए लोकप्रियता मरीचिका है। किसी भी जज का लक्ष्य लोकप्रियता नहीं होता। विचार यह होता है कि विवाद का हल हो।
सीजेआई बोबडे ने श्वैश्वीकरण के युग में मध्यस्थताश् विषय पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के तीसरे संस्करण में कहा कि भारत में संस्थागत मध्यस्थता के विकास के लिए एक मजबूत श्आरबिट्रेशन (मध्यस्थता) बारश् जरूरी है क्योंकि यह ज्ञान और अनुभव वाले पेशेवरों की उपलब्धता और पहुंच सुनिश्चित करेगा। सीजेआई ने कहा कि आज अंतरराष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्य और निवेश वाले वैश्विक आधारभूत ढांचे में मध्यस्थता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वैश्विक समुदाय के एक अभिन्न सदस्य और व्यापार व निवेश के लिहाज से महत्वपूर्ण होने के नाते भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में किस तरह से शामिल होता है इसका सीमापार अंतरराष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्य और निवेश के प्रवाह पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है।
लोकप्रियता पाना किसी जज का लक्ष्य नहीं
भारत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने वैश्वीकरण के युग में मध्यस्थता Óपर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के तीसरे संस्करण में बोलते हुए कहा कि एक व्यापक कानून को तैयार करने का समय आ गया है जिसमें अनिवार्य पूर्व मुकदमेबाजी मध्यस्थता शामिल है। बोबडे ने कहा कि वाणिज्यिक न्यायालयों के अधिनियम में उल्लिखित पूर्व-संस्थान मध्यस्थता और निपटान कई और संस्थानों के लिए बहुत अधिक लाभों को देखते हुए पूर्व-मुकदमेबाजी मध्यस्थता की आवश्यकता पर जोर देने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
सीजेआई ने कहा कि वाणिज्यिक अदालत अधिनियम में उल्लेखित पूर्व-संस्थान स्तर वाली मध्यस्थता और समाधान मुकदमा से पहले मध्यस्थता के कई फायदों की जरूरत पर जोर देते हुए कई और संस्थानों के लिए एक रास्ता तैयार करेगा।श् उन्होंने कहा, श्मेरा मानना है कि एक व्यापक कानून बनाने का यह बिल्कुल सही समय है, जिसमें मुकदमे से पहले अनिवार्य मध्यस्थता हो। अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में भारत की भूमिका का जिक्र करते हुए सीजेआई बोबडे ने कहा कि हाल के समय में, वैश्वीकरण के चलते भारत से जुड़े सीमापार लेनदेन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जिससे सीमापार मध्यस्थता की मांग भी बढ़ी है। इसके परिणामस्वरूप बढ़ते मामलों की जटिलता से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय परंपराओं की स्थापना हुई है।
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