व्यापार और निवेश पर भारत-नार्वे वार्ता का पहला सत्र संपन्न

नईदिल्ली,16 जनवरी (आरएनएस)। व्यापार और निवेश (डीटीआई) पर भारत-नॉर्वे वार्ता का पहला सत्र 15-16 जनवरी को नई दिल्ली में आयोजित किया गया । यह आयोजन नार्वे के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान 8 जनवरी, 2019 को भारत और नार्वे के बीच विचारणीय विषयों पर हुए एक समझौते के परिप्रेक्ष्य में आयोजित किया गया।
वार्ता का पहला दिन 15 जनवरी को भारतीय उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ संवाद के साथ शुरु हुआ। इस दौरान अर्थव्यवस्था, जहाजरानी और समुद्र संबंधि गतिविधियों, आईसीटी, नवीकरणीय ऊर्जा, मत्स्य पालन और सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उपक्रमों जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर चर्चा की गई। दोनों पक्षों ने अपने देशों में उपलब्ध निवेश के अवसरों पर विचारों का आदान-प्रदान किया और साथ ही आकर्षक निवेश वातावरण बनाने के लिए संबंधित सरकारों द्वारा सुविधाओं के विस्तार की जानकारी दी। इस अवसर पर दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा विकास निगम (डीएमआईसीडीसी) और इन्वेस्ट इंडिया द्वारा प्रस्तुति दी गई। इस सत्र में उद्योग संगठनों इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की), भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई), मत्स्य पालन, आईसीटी, नवीकरणीय ऊर्जा, विद्युत उपकरण, सूचना प्रौद्योगिकी और सौर ऊर्जा के क्षेत्र से जुड़े उद्योग संगठनों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर उद्योग एंव आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) और आर्थिक मामलों के विभाग ने देश में निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार की विभिन्न नीतिगत पहलों पर प्रकाश डाला।
वाणिज्य सचिव निधि मणी त्रिपाठी और तथा व्यापार,उद्योग एव मत्स्य मंत्रालय के महानिदेशक अर्लिंमरिमस्टेड ने 16 जनवरी को आयोजित सत्र की सह अध्यक्षता की। बैठक में भारतीय पक्ष का प्रतिनिधित्व वाणिज्य, डीपीआईआईटी, मत्स्य, रसायन और पेट्रोकेमिकल्स, आर्थिक मामलों, विदेश मामलों, खाद्य प्रसंस्करण, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा, बिजली, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यटन और कौशल विकास तथा उद्यमिता और जहाजरानी मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा किया गया
अप्रैल 2000 से सितंबर 2019 के बीच के बीच भारत में नार्वे से करीब 257 मिलियन डॉलर का निवेश हुआ। दोनों देशों के बीच आर्थिक आदान प्रदान संतोषजनक रहने के बावजूद पारस्परिक रूप से लाभप्रद और उनके पूरक क्षेत्रों में और अधिक गहनता और विविधता लाने के पर्याप्त अवसर हैं।
दोनों पक्षों ने यह पाया कि वाणिज्यिक आदान-प्रदान की गतिशील प्रकृति के परिणामस्वरूप भारत और नॉर्वे के बाजारों में पहुंच बनाने और वहां खुद को स्थापित करने में रुचि रखने वाली कंपनियों की संख्या आने वाले दिनों में और बढ़ जाएगी।
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