महाराष्ट्र का डर नितीश को भी सता रहा
नयी दिल्ली ,13 नवंबर (आरएनएस)। नितीश कुमार को भी महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना की गठबंधन टूटने से डर सताने लगा है कि बिहार में भी उनकी पार्टी के साथ भी ऐसा ना हो जाये। क्योंकि बिहार में भी 2020 के विधानसभा चुनाव होने वाले है। अभी वर्तमान में महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर शिवसेना के एनडीए से अलग होने को लेकर बीजेपी के दूसरे घटक दल जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने सवाल उठाया है। जेडीयू भी देख रहीं है कि बिहार में उनकी गठबंधन सरकार की सरकार भाजपा के साथ है और आने वाले गत विधानसभा चुनाव में उनके साथ भी ऐसा ना हो इसलिए जेडीयू ने भाजपा के चेताया है कि एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इसलिए जेडीयू ने को-आर्डिनेशन कमेटी बनाए जाने की बात की है। जेडीयू का कहना है कि अटल-आडवाणी की तरह पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी समन्वय समिति बनाएं ताकि आपसी मतभेदों को सुलझाया जा सके। क्योंकि बिहार भाजपा में भी एक धरा ऐसा है जो बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के खिलाफ में हर समय बयान देने से कोई भी परहेज नहीं करते है। बिहार में भी एनडीए का मुख्यमंत्री चेहरा नितीश कुमार ही है और तब भी पार्टी के बहुत नेतालोग उनके खिलाफ बयान देने से नहीें मानते है। ऐसे भी महाराष्ट्र में कभी शिवसेना बड़ा भाई हुआ करता था लेकिन 2014 के विधानसभा के चुनाव में भाजपा वहां बड़े भाई की भूमिका आ गई। जेडीयू का डर भी सही है क्यों कि देखा जाये तो महाराष्ट्र 2019 विधानसभा चुनाव में शिवसेना शुरू से बोलती आ रही है कि इसबार महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री शिवसेना का होगा। शिवसेना के चुनाव प्रचार को लेकर भाजपा ने कभी विरोध नहीं किया लेकिन चुनाव खत्म होते ही शिवसेना को लग गया की उनकी एक भी ना चलेगी। अब जेडीयू भी देख रही है कि कही उनके साथ भी शिवसेना वाला हाल ना हो जाये। क्योंकि केंद्र की सरकार में अभी भी जेडीयू बाहर से समर्थन दे रही है अभी तक मंत्रीमंडल में शामिल नहीं हुआ है। शिवसेना और बीजेपी के रिश्ते टूटने पर जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि इतने पुराने रिश्ते टूटते हैं तो विश्वास भी टूटते हैं और पीड़ा भी होती है। उन्होंने कहा है कि समन्वय और संवाद की कमी की वजह से यह मनमुटाव सामने आया है। एनडीए के घटक दलों को समय दिए जाने की जरूरत है। इसके लिए एक प्लेटफार्म बनना चाहिए। अटल जी के समय में एनडीए की को-आर्डिनेशन कमेटी थी। वैसी ही कमेटी फिर से बनाए जाने की जरूरत है। जेडीयू ने कहा कि अगर घटक दलों के साथ अधिक समन्वय होगा तो बेहतर होगा। केसी त्यागी ने कहा कि छोटे दल हों चाहे बड़े दल, उन्हें उदार होने की आवश्यकता है। बड़े भाई का हिस्सा ज्यादा होता है और उदारता हमेशा बड़े भाई को दिखाना चाहिए। जेडीयू नेता ने कहा कि शिवसेना का कांग्रेस के साथ मिलना एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना मानी जाएगी, जो बाल ठाकरे की नीतियों से मेल नहीं खाती है। केसी त्यागी ने यह भी कहा कि पहले इस तरह के जो घटनाक्रम होते थे वह कोआर्डिनेशन कमेटी का हिस्सा हुआ करते थे। अब शिवसेना-बीजेपी में के बीच क्या घटित हुआ, वह अन्य घटक दलों की जानकारी में नहीं है। केसी त्यागी ने कहा कि वैचारिक सवालों पर मतभेद उजागर नहीं होने चाहिए। इस बात को मैं जरूर जिम्मेदारी के साथ कहना चाहता हूं कि एनडीए का कोई एक घोषित एजेंडा था और कभी भी एनडीए के घटक दलों में कोई वैचारिक मतभेद उजागर नहीं हुआ। इनसभी मामलें को देखते हुए जेडीयू अब पहले से जायदा सर्तक दिख रही है।
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