मनुष्य को दूसरों की अच्छाई देखनी चाहिए बुराई नहीं – असंग साहेब
राजिम, 09 फरवरी (आरएनएस)। राजिम कुंभ मेला में पधारे असंग साहेब जी के सुखद सत्संग का तीसरे दिन दिवस पंडाल पर असंग साहेब जी ने अपने प्रवचन गुरुवंदन के साथ प्रारंभ की। उन्होंने कहा कि रिस्तों में संतोष होना चाहिए। जहां संतोष नहीं, वहॉं असंतोष पैदा होता है। साहेब जी ने कहा कि हमें जीवन में योग्य व्यक्ति का चुनाव करना चाहिए क्योंकि योग्य व्यक्ति ही हमें सही मार्ग पर ले जायेगा। कल की प्रष्न का स्मरण दिलाते हुए प्रथम प्रष्न का उत्तर दिया। मोह और ममता एक ऐसी जंजीर है जिसने भी अपनाया हानि ही हुई। सीता ने स्वर्ण मृग से मोह किया लंका पहुॅंच गयी और सुर्पनखा ने श्रीराम से मोह किया तो उसकी नाक, कान कट गई। मोहित तो दूसरा होता है लेकिन भुगतना दूसरों को पड़ता है। उन्होंने कहा कि कामना दो प्रकार एक भोगों की कामना दूसरा पद प्रतिष्ठा की कामना। मनुष्य को भोगों की कामना से दूर होकर पद प्रतिष्ठा की कामना करना चाहिए और साथ ही देष की प्रतिष्ठा को भी चिंता करनी चाहिए। हमारा देष पूरे विष्व में महान है कयोंकि यहॉं प्रेम मिलता है, सेवा व मुस्कान मिलता है। इसलिए इनकी रक्षा करने की कामना करनी चाहिए। हमें देवता को ढूंढने की जरुरत नहीं है जो व्यक्ति दूसरे का काम आवे वही देवता है और न आये तो चांडाल है। साहेबजी ने धनवान बनने की सू़त्र बताते हुए कहा कि मनुष्य को 6 बातें का ध्यान रखना चाहिए पहला उत्थान जिसका अर्थ है हमें उपर उठना चाहिए।उद्दोगम करना चाहिए और उपर वही उठता है। दूसरा संयम होना चाहिए अर्थात अपने आप पर, अपनी वाणी पर नियंत्रण होना चाहिए। तीसरा दक्षम – व्यक्ति को कुषल होना चाहिए पारंगत व होषीयार होना चाहिए। चैथा धर्य रखना चाहिए। पॉंचवा स्मरण शक्ति तेज होना चाहिए और अंत में विवेक होना चाहिए जो सोच-विचार को अच्छा रखना चाहिए क्यों कि जो व्यक्ति विवेक से कार्य करते है उनको सफलता जरुर मिलता है।